By: Inextlive | Updated Date: Wed, 16 Nov 2022 00:32:56 (IST)
बंद कमरे से होनेवाला साइबर अपराध अब लग्जरी और ट्रेसलेस व्हीकल से ऑपरेट होने लगोा है.
रांची (ब्यूरो): पुलिस के ट्रैकिंग सिस्टम से बचने के लिए साइबर अपराधी ट्रेसलेस वाहन का प्रयोग करने लगे हंै। वाहनों मेें बैठकर ये लोग एक शहर से दूसरे शहर घूमकर पुलिस को चकमा देने में सफल हो रहे हंै। पुलिस भी इस बात को स्वीकार कर रही है। पुलिस विभाग के पदाधिकारी ने बताया कि बीते कुछ दिनों में साइबर अपराधियों को पकडऩे में पुलिस को सफलता मिली है। पुलिस उनके ठिकानों को ट्रेस कर उनतक पह़ुंच रही है। इसे देखते हुए साइबर अपराधी ठगी के लिए एडवांस और न्यू टेक्नोलॉजी को नए हथियार के रूप मेें इस्तेमाल कर रहे हंै। ट्रेसलेस वाहन भी उसी का एक हिस्सा है। इस वाहन को पुलिस ट्रैस नहीं कर पाती। मोबाइल फोन से जबतक साइबर क्रिमिनल्स को ट्रैक किया जाता है, तबतक अपराधी दूसरे शहर की ओर निकल जाते हैं।
रांची-रामगढ़ रूट पर हुआ था खुलासा
साइबर अपराधी किस प्रकार गाडिय़ों से घूम कर लोगों को शिकार बना रहे हैं इसका खुलासा बीते महीने रांची-रामगढ़ रूट पर हुआ था। रांची पुलिस ने छापेमारी करते हुए दो शातिर अपराधियों को गिरफ्तार किया था। इनसे पूछताछ में यह जानकारी सामने आयी कि साइबर अपराधी अब लग्जरी ट्रेसलेस गाडिय़ों से घूम-घूमकर घटना को अंजाम दे रहे हैं। इन अपराधियों के पास से सैकड़ों लोगों के फोन नंबर बरामद हुए थे। अपराधियों ने बताया कि पुलिस ट्रेस न कर पाए इसके लिए मोमेंट करते हुए लोगों को शिकार बनाया जा रहा है। रुपए ट्रांसफर होने के बाद फौरन इलाके को छोड़ दूसरे शहर में मूव कर जाते हैं। इससे पुलिस उनतक पहुंच नहीं पाती है।
एक हजार से अधिक अरेस्ट
बीते एक साल में झारखंड पुलिस ने साइबर और टेक्निकल सेल की मदद से एक हजार से अधिक साइबर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया है। टेक्निकल सेल की मदद से झारखंड पुलिस ने बिहार, दिल्ली, यूपी, केरल जैसे राज्यों से भी अपराधियों को दबोचा है। समय के साथ पुलिस का भी नेटवर्क सिस्टम मजबूत हुआ है। ट्रैकिंग सिस्टम भी पहले से ज्यादा कारगर हुए हैं। मोबाइल फोन और इंटरनेट की मदद से पुलिस अपराधियों को ट्रेस करने में सफल हो रही है।
43 परसेंट की हुई बढ़ोतरी
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2016 में साइबर अपराध के मामलों में झारखंड 13वें स्थान पर था, वहीं साइबर कांड मात्र 180 थे, लेकिन वर्ष 2021 में यह बढक़र 1153 तक पहुंच गया। मामलों करीब 43.98 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। एक साल पहले तक इन अपराधियों तक पहुंच पाना भी पुलिस के लिए चुनौती भरा होता था, लेकिन बीते कुछ महीनों में पुलिस तंत्र काफी मजबूत हुआ है। इससे साइबर क्रिमिनल्स को दबोचने में भी पुलिस सफल हुई है।
तुरंत कार्रवाई से फायदा
ठगी होने पर 24 घंटे के अंदर इसकी सूचना देने और त्वरित कार्रवाई होने से ठगी गई राशि को वापस पाया जा सकता है। साइबर सेल की टीम पैसे ट्रांसफर होने वाले अकाउंट को फौरन फ्रीज कर ठगी गई राशि को रिकवर किया जाता है। पुलिस की ओर से भी आम लोगों को समय-समय पर इसके प्रति अवेयर किया जाता है। ठगी के मामलों को दर्ज कराने के लिए यूनिर्वसल नंबर 1930 जारी किया गया है। इस नंबर पर अविलंब ठगी की डिटेल बताने पर साइबर सेल तत्काल पैसे के सारे ट्रेल देखता है। इसके बाद जिन बैंक के खातों में ठगी के पैसे ट्रांसफर हुए हुए हैं उन खातों को तत्काल फ्रीज करा दिया जाता है।
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