तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा
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चीन की सरकार तिब्बत में बौद्ध धर्म की विचारधारा को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है। बौद्ध धर्म और तिब्बत की परंपरा चीन में भी तेजी से फैल रही है। ऐसे में क्षणिक समस्याओं को देखकर दुखी न हों। धीरे-धीरे चीन में भी परिवर्तन हो रहा है। यह संदेश विशेषकर तिब्बत में रह रहे लोगों के लिए है। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा ने आचार्य धर्मकीर्ति की रचना प्रमाणवर्तिका कारिका पर प्रवचन दूसरे दिन यह बात कही। दलाईलामा ने कहा कि बुद्ध का मार्ग तर्क के माध्यम से ही लाभदायक है। महज प्रार्थना, पूजा या श्रद्धा से ही कल्याण नहीं होने वाला है।
उन्होंने कहा कि समाज में हमें जो भी सुख प्राप्त होता है, वह लोगों के आपस में आश्रित होने से मिलता है। अकेले रहकर सुख की प्राप्ति संभव नहीं है। मां के गर्भ से लेकर आज तक हमें जो भी सुख प्राप्त होता है, वह दूसरों के सहयोग से ही मिलता है। हर चीज एक-दूसरे पर आश्रित है। इसलिए हमें ऐसे चित्त का विकास करना चाहिए कि मैं सदैैव दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करता रहूं, किसी का भी अहित न करूं।
उन्होंने कहा कि परीक्षण के माध्यम से हमें मालूम होता है कि हम चीजों की जिस तरह की कल्पना करते हैं, वे वैसी नहीं होतीं। मैं और मेरा की भावना से स्वार्थी भावना बार-बार बलवती होती है। मैं और मेरा को बहुत ज्यादा महत्व देने और दूसरों को महत्वपूर्ण न मानने के कारण ही बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
आध्यात्मिक गुरु ने कहा कि पिछले सैकड़ों वर्षों में लाखों-करोड़ों लोगों और अनंत अन्य जीवधारियों की हत्या की गई। अपने स्वार्थ के लिए क्लेशवश यह हिंसा की गई है। आज भी दुनिया में फैली अशांति हमारी अविद्या या क्लेशों के कारण पैदा हुई है। जितने भी युद्ध हुए, वे सब हमारे स्वार्थ या अविद्या के कारण हुए हैं। दुनिया में बहुत से धर्म हैं। सभी धर्म कहते हैं कि किसी को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। लेकिन आसक्ति रूपी चित्त किस प्रकार से अपना प्रभाव दिखाता है, इसकी भारतीय दर्शन में भी विस्तृत व्याख्या की गई है।
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