मुरादाबाद। आज विजयादशमी है। एक बार फिर रावण के पुतले का दहन होगा, लेकिन उन तमाम रावण रूपी बीमारियों का अंत कैसे करें, यह उनसे जानना जरूरी है जो इनकी जकड़ थे या हैं। पिछले दो सालों में कोरोना वायरस ने लोगों को तोड़ दिया। जो शारीरिक या मानसिक रूप से थोड़ा सा भी कमजोर पड़े कोरोना वायरस ने उनको जकड़ लिया। फिर जो हुआ वह सभी जानते हैं। इन सबके बीच कुछ ऐसे भी जुझारू थे, जो गंभीर बीमारियों से जकड़े होने के बाद भी कोरोना से लड़े और जीते। कुछ को तो कोरोना छू भी नहीं पाया। इसके साथ ही उन्होेंने अपनी उस बीमारी पर भी अपने हौसले से विजय पाई और लोगों के लिए प्रेरणा बने। ऐसा आप भी कर सकते हैं, जरूरत है संकल्प लेने की। बीमारी के इस रावण को परास्त करके ही रहेंगे।
जागरूकता से पता चला कैंसर, घबराई नहीं डटकर किया मुकाबला
मुरादाबाद। आरएसडी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की वाइस चेयरमैन डॉ. जी कुमार ने बताया कि वे आई केन केयर आई केन विन संस्था में काउंसलर के रूप में कैंसर के प्रति जागरूकता शिविर लगाती थीं। एक दिन ब्रेस्ट में गांठ का पता चला। बिना समय गंवाए अकेले ही जांच करवाने चली गई। वहां पर कैंसर होने की जानकारी मिली। घबराने के बजाय दिल्ली में ऑपरेशन करवाया। इसी बीच पाइप से संक्रमण हो गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। दृढ़ इच्छा शक्ति को बनाए रखा और आध्यात्म को अपना लिया। कैंसर को मात दिए अब 12 वर्ष हो गए हैं। नियमित व्यायाम, अपने आसपास स्वच्छ वातावरण, सादा खाना, खुद को काम में व्यस्त रखना, सकारात्मक सोचना और हर परिस्थिति में खुश रहना ही मेरे स्वस्थ रहने का राज है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को 40 वर्ष की उम्र के बाद नियमित रूप से मेमोग्राफी व अन्य जांचें करवाते रहना चाहिए, जिससे किसी भी बीमारी के होने की आशंका को रोका जा सके।
टिप्स
– ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए थ्री फिंगर थ्री मिनट की जांच करें महिलाएं
– बदलाव या गांठ की जानकारी को छुपाने के बजाय चिकित्सक को दिखाएं
– बीमारी के बारे में ज्यादा सोचने के बजाय खुश रहने की कोशिश करें
– 40 आयु वर्ष की महिलाएं नियमित रूप से अपनी मेमोग्राफी करवाएं
– फास्ट फूड के सेवन के बजाय ताजा खाना खाने की बनाएं आदत
कैंसर को मात देकर कोरोना काल में की मरीजों की सेवा
मुरादाबाद। सम्राट अशोक नगर निवासी और महिला जिला अस्पताल में कार्यरत नर्स पुष्पा देवी को वर्ष 2019 में ब्रेस्ट कैंसर हुआ था। ब्रेस्ट में हुई गांठ से दर्द होता था। जांच में कैंसर होने की पुष्टि हुई। इसके बाद एम्स ऋषिकेश में उपचार करवाया। आठ कीमो होने की वजह से बाल झड़ गए, लेकिन खुद को निराश नहीं होने दिया। हमेशा सकारात्मक बातें करती थी और खुश रहने का प्रयास करती थी। डेढ़ वर्ष के उपचार के बाद ठीक हुई। इस दौरान कोरोना संक्रमण काल आ गया। अपने स्वास्थ्य की पूरी एहतियात रखते हुए नियमित ड्यूटी की और मरीजों की सेवा की। उन्होंने बताया कि खुद को बीमार महसूस करने के बजाय मरीजों की सेवा करती हूं तो संतुष्टि मिलती है। अब वह अपने खाने का पूरा ध्यान रखती हैं।
टिप्स
– बीमारी के लक्षण सामने आने पर उपचार में न करें देरी
– अकेले रहने के बजाय परिजनों के साथ बिताएं समय
– अपने शौक को पूरा करने के लिए निकालें समय
– गुस्सा करने से खुद को बचाएं
96 वर्ष की उम्र में भी शुगर-बीपी जैसी बीमारियों से दूर
मुरादाबाद। सिविल लाइंस निवासी 96 वर्षीय डॉ. डीपी मनचंदा ने बताया कि उनकी 96 वर्ष की आयु को पूरा करने का श्रेय वह भगवान के आशीर्वाद को देते हैं, क्योंकि यदि कोई व्यक्ति कितना भी स्वस्थ है, फिर भी सड़क हादसे ऐसी अनहोनी होते हैं, जो किसी भी परिवार को जीवन का सबसे बड़ा दर्द दे देते हैं। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले उनकी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हुआ है, इसलिए मैंने टहलना बंद कर दिया है। अब मैं सप्ताह में पांच दिन घर पर ही साइक्लिंग करता हूं। इसके अलावा सादा भोजन करता हूं और कोशिश करता हूं कि आम दिनचर्या के कार्य अधिक से अधिक मैं स्वयं ही करूं। इसके अलावा सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक क्लीनिक में बैठता हूं और मरीजों को देखता हूं। बचपन से ही सोने के लिए समय निर्धारित किया है और उसका अब तक अनुसरण कर रहा हूं। रात को 11 बजे सोता हूं और सुबह पांच बजे जग जाता हूं।
टिप्स
– रिमोट के इस्तेमाल को छोड़कर खुद की करें घरेलू कार्य
– एक बार में दो घंटे से ज्यादा समय तक न बैठें
– वजन को नियंत्रित रखें, क्योंकि इससे मधुमेह और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है
– शराब और धूम्रपान का सेवन न करें
– सुबह खाली पेट कम से कम 45 मिनट जरूर टहलें
आम बीमारी को जीवन में नहीं बनने दिया खास
मुरादाबाद। शिवपुरी निवासी 88 वर्षीय सेवानिवृत्त सेटलमेंट ऑफिसर चकबंदी राजेंद्र प्रताप विमल ने बताया कि उन्हें 50 वर्ष से मधुमेह है और 40 वर्ष से इंसुलिन ले रहे हैं। वर्ष 1993 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने नियमित दिनचर्या और शाकाहारी भोजन को पूरी तरह अपना लिया। उनका कहना है कि मैं प्रतिदिन 30 मिनट टहलता हूूं और एक घंटा योग करता हूं। रोजाना आठ से नौ घंटे की नींद लेता हूं। पिछले वर्ष मई में कोरोना संक्रमण हो गया था और 20 दिन अस्पताल में भर्ती रहा, लेकिन सकारात्मकता नहीं छोड़ी। मैं अपनी ऊर्जा बीमारी के बारे या बुढ़ापे के बारे में सोचने के बजाय परिवार व दोस्तों के साथ खुश रहने, किताब और अखबार पढ़ने में लगता हूं। अपनी सेहत का राज मैं निर्धारित समय और निश्चित मात्रा में शाकाहारी भोजन करना मानता हूं। सेहत के प्रति सर्तक रहता हूं, इसलिए मुझे पता होता है कि इंसुलिन कब और कितनी मात्रा में लेनी है। परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे, बहुएं और चार पोते-पोती हैं।
टिप्स
– गलत चीजों के बारें में सोचने के बजाय दोस्तों के साथ समय बिताएं
– अकेले होने पर अखबार और किताबें सबसे अच्छी साथी हैं
– नॉनवेज को छोड़कर शाकाहारी भोजन अपनाएं
– निश्चित समय और निर्धारित मात्रा में ही खाएं
– छह से आठ घंटे की नींद जरूर लें
उम्र का सैकड़ा, बीमारियों का स्कोर जीरो
मुरादाबाद। लाल गंगवारी गांव की रहने वाली बतुलन 105 साल की हैं। लेकिन बीमारियों का स्कोर जीरो है। वह कभी किसी बड़ी बीमारी की जद में नहीं आई। न तो उन्हें आम हो चुकी डायबिटीज जैसी बीमारी है और न ही ब्लड प्रेशर की बीमारी है। उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने संक्रमण के दो साल भी काट लिए। हकीमपुर गांव में जन्मी बतुलन का 15 वर्ष की आयु में लालपुर गंगवारी निवासी इस्माईल हुसैन से विवाह हुआ। उनके परिवार में दो बेटे और दो बेटियों हैं। बतुलन अब परदादी और परनानी बन चुकी है।
खुशमिजाजी और संतुलित आहार से जिंदगी का सैकड़ा किया पार
– दुबली पतली बतुलन ने खुशमिजाजी और संतुलित आहार से जिंदगी का सैकड़ा पार किया है। इस दौरान कई बाधाओं और कठिनाइयों को दूर किया। बतुलन परिश्रम, खुशमिजाजी और संयमित जीवन शैली को अपने स्वस्थ्य जीवन का आधार मानती हैं। वह आज भी हाथ की चक्की से आटे की रोटी खातीं हैं। घर की उगी सब्जियां और दाल उनका आहार है। वह दूसरे को भी खुश रहने की सलाह देतीं हैं। कहतीं हैं, अपना काम खुद करती हूं, जब भी मौका मिलता है परिवार के सदस्यों के बीच बैठ कर हंसी ठिठौली कर लेती हूं।
टेबल टेनिस नहीं थैलेसीमिया से जीत रहे कुनाल
मुरादाबाद। मुरादाबाद के टेबल टेनिस किलाड़ी कुनाल अरोरा बचपन से ही घातक बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित हैं। उन्हें हर पंद्रहवें दिन दो यूनिट रक्त चढ़ाया जाता है जो आज भी जारी है। बावजूद इसके कुनाल के जज्बे ने उन्हें अलग मुकाम पर खड़ा कर दिया। वह टेबिल टेनिस नेशनल चैंपियनशिप में तीन बार गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। उन्होंने एशियन पैरालंपिक चैंपियनशिप में भारत की टीम का हिस्सा बनकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था। कुनाल के पिता यशपाल अरोरा भी लॉन टेनिस के नेशनल खिलाड़ी हैं। उन्होंने बताया कि कुनाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीकॉम इसी वर्ष पूरा किया है। पिता ने बताया कि कुनाल स्पोर्ट्स में बेहद दिलचस्पी के कारण कभी अपनी बीमारी से निराश नहीं होता। उसने ठान लिया है कि बीमारी के साथ ही जीना है तो खुलकर जियेंगे।
क्या है थैलेसीमिया बीमारी
थैलेसीमिया बच्चे को माता पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है। जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। जिसके कारण उसे बार बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
हौसले और हिम्मत के उजाले से अंधेरे को दी मात
मुरादाबाद। दिल्ली रोड मझोला स्थित बैंक आफ बड़ौदा की शाखा में सभी की नजर कंप्यूटर से काम कर रहे सिर्फ एक ही लिपिक पर रहती है, लेकिन उसकी नजर सिर्फ ग्राहकों को अपने कार्यों से संतुष्ट करने में लगी रहती है। आंख नहीं रहते हुए भी वह अपने कार्यों से बैंक में ग्राहकों को मुरीद बना देता है।
मूलरूप से राजस्थान अलवर के रहने वाले ऋतुराज मीणा (27) दिल्ली रोड मझोला स्थित बैंक आफ बड़ौदा की शाखा में लिपिक पद पर कार्यरत हैं। उसे जन्म से ही दोनों आंखों से दिखाई नहीं देता है। लिपिक ने बताया कि वह चार भाइयों में सबसे बड़ा है। पिता मांगेलाल मीणा खेती का काम करते हैं। बचपन में वह अन्य बच्चों की तरह पढ़ लिखकर बड़ा आफिसर बनना चाहता था। इसी कारण आर्थिक कमजोरी के बावजूद पिता ने उसका एडमिशन अलवर के एक प्राइवेट अंध विद्यालय में करा दिया। अपनी लगन के चलते ऋतुराज क्लास में प्रथम आने लगा।
विस्तार
मुरादाबाद। आज विजयादशमी है। एक बार फिर रावण के पुतले का दहन होगा, लेकिन उन तमाम रावण रूपी बीमारियों का अंत कैसे करें, यह उनसे जानना जरूरी है जो इनकी जकड़ थे या हैं। पिछले दो सालों में कोरोना वायरस ने लोगों को तोड़ दिया। जो शारीरिक या मानसिक रूप से थोड़ा सा भी कमजोर पड़े कोरोना वायरस ने उनको जकड़ लिया। फिर जो हुआ वह सभी जानते हैं। इन सबके बीच कुछ ऐसे भी जुझारू थे, जो गंभीर बीमारियों से जकड़े होने के बाद भी कोरोना से लड़े और जीते। कुछ को तो कोरोना छू भी नहीं पाया। इसके साथ ही उन्होेंने अपनी उस बीमारी पर भी अपने हौसले से विजय पाई और लोगों के लिए प्रेरणा बने। ऐसा आप भी कर सकते हैं, जरूरत है संकल्प लेने की। बीमारी के इस रावण को परास्त करके ही रहेंगे।
जागरूकता से पता चला कैंसर, घबराई नहीं डटकर किया मुकाबला
मुरादाबाद। आरएसडी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की वाइस चेयरमैन डॉ. जी कुमार ने बताया कि वे आई केन केयर आई केन विन संस्था में काउंसलर के रूप में कैंसर के प्रति जागरूकता शिविर लगाती थीं। एक दिन ब्रेस्ट में गांठ का पता चला। बिना समय गंवाए अकेले ही जांच करवाने चली गई। वहां पर कैंसर होने की जानकारी मिली। घबराने के बजाय दिल्ली में ऑपरेशन करवाया। इसी बीच पाइप से संक्रमण हो गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। दृढ़ इच्छा शक्ति को बनाए रखा और आध्यात्म को अपना लिया। कैंसर को मात दिए अब 12 वर्ष हो गए हैं। नियमित व्यायाम, अपने आसपास स्वच्छ वातावरण, सादा खाना, खुद को काम में व्यस्त रखना, सकारात्मक सोचना और हर परिस्थिति में खुश रहना ही मेरे स्वस्थ रहने का राज है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को 40 वर्ष की उम्र के बाद नियमित रूप से मेमोग्राफी व अन्य जांचें करवाते रहना चाहिए, जिससे किसी भी बीमारी के होने की आशंका को रोका जा सके।
टिप्स
– ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए थ्री फिंगर थ्री मिनट की जांच करें महिलाएं
– बदलाव या गांठ की जानकारी को छुपाने के बजाय चिकित्सक को दिखाएं
– बीमारी के बारे में ज्यादा सोचने के बजाय खुश रहने की कोशिश करें
– 40 आयु वर्ष की महिलाएं नियमित रूप से अपनी मेमोग्राफी करवाएं
– फास्ट फूड के सेवन के बजाय ताजा खाना खाने की बनाएं आदत
कैंसर को मात देकर कोरोना काल में की मरीजों की सेवा
मुरादाबाद। सम्राट अशोक नगर निवासी और महिला जिला अस्पताल में कार्यरत नर्स पुष्पा देवी को वर्ष 2019 में ब्रेस्ट कैंसर हुआ था। ब्रेस्ट में हुई गांठ से दर्द होता था। जांच में कैंसर होने की पुष्टि हुई। इसके बाद एम्स ऋषिकेश में उपचार करवाया। आठ कीमो होने की वजह से बाल झड़ गए, लेकिन खुद को निराश नहीं होने दिया। हमेशा सकारात्मक बातें करती थी और खुश रहने का प्रयास करती थी। डेढ़ वर्ष के उपचार के बाद ठीक हुई। इस दौरान कोरोना संक्रमण काल आ गया। अपने स्वास्थ्य की पूरी एहतियात रखते हुए नियमित ड्यूटी की और मरीजों की सेवा की। उन्होंने बताया कि खुद को बीमार महसूस करने के बजाय मरीजों की सेवा करती हूं तो संतुष्टि मिलती है। अब वह अपने खाने का पूरा ध्यान रखती हैं।
टिप्स
– बीमारी के लक्षण सामने आने पर उपचार में न करें देरी
– अकेले रहने के बजाय परिजनों के साथ बिताएं समय
– अपने शौक को पूरा करने के लिए निकालें समय
– गुस्सा करने से खुद को बचाएं
96 वर्ष की उम्र में भी शुगर-बीपी जैसी बीमारियों से दूर
मुरादाबाद। सिविल लाइंस निवासी 96 वर्षीय डॉ. डीपी मनचंदा ने बताया कि उनकी 96 वर्ष की आयु को पूरा करने का श्रेय वह भगवान के आशीर्वाद को देते हैं, क्योंकि यदि कोई व्यक्ति कितना भी स्वस्थ है, फिर भी सड़क हादसे ऐसी अनहोनी होते हैं, जो किसी भी परिवार को जीवन का सबसे बड़ा दर्द दे देते हैं। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले उनकी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हुआ है, इसलिए मैंने टहलना बंद कर दिया है। अब मैं सप्ताह में पांच दिन घर पर ही साइक्लिंग करता हूं। इसके अलावा सादा भोजन करता हूं और कोशिश करता हूं कि आम दिनचर्या के कार्य अधिक से अधिक मैं स्वयं ही करूं। इसके अलावा सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक क्लीनिक में बैठता हूं और मरीजों को देखता हूं। बचपन से ही सोने के लिए समय निर्धारित किया है और उसका अब तक अनुसरण कर रहा हूं। रात को 11 बजे सोता हूं और सुबह पांच बजे जग जाता हूं।
टिप्स
– रिमोट के इस्तेमाल को छोड़कर खुद की करें घरेलू कार्य
– एक बार में दो घंटे से ज्यादा समय तक न बैठें
– वजन को नियंत्रित रखें, क्योंकि इससे मधुमेह और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है
– शराब और धूम्रपान का सेवन न करें
– सुबह खाली पेट कम से कम 45 मिनट जरूर टहलें
आम बीमारी को जीवन में नहीं बनने दिया खास
मुरादाबाद। शिवपुरी निवासी 88 वर्षीय सेवानिवृत्त सेटलमेंट ऑफिसर चकबंदी राजेंद्र प्रताप विमल ने बताया कि उन्हें 50 वर्ष से मधुमेह है और 40 वर्ष से इंसुलिन ले रहे हैं। वर्ष 1993 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने नियमित दिनचर्या और शाकाहारी भोजन को पूरी तरह अपना लिया। उनका कहना है कि मैं प्रतिदिन 30 मिनट टहलता हूूं और एक घंटा योग करता हूं। रोजाना आठ से नौ घंटे की नींद लेता हूं। पिछले वर्ष मई में कोरोना संक्रमण हो गया था और 20 दिन अस्पताल में भर्ती रहा, लेकिन सकारात्मकता नहीं छोड़ी। मैं अपनी ऊर्जा बीमारी के बारे या बुढ़ापे के बारे में सोचने के बजाय परिवार व दोस्तों के साथ खुश रहने, किताब और अखबार पढ़ने में लगता हूं। अपनी सेहत का राज मैं निर्धारित समय और निश्चित मात्रा में शाकाहारी भोजन करना मानता हूं। सेहत के प्रति सर्तक रहता हूं, इसलिए मुझे पता होता है कि इंसुलिन कब और कितनी मात्रा में लेनी है। परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे, बहुएं और चार पोते-पोती हैं।
टिप्स
– गलत चीजों के बारें में सोचने के बजाय दोस्तों के साथ समय बिताएं
– अकेले होने पर अखबार और किताबें सबसे अच्छी साथी हैं
– नॉनवेज को छोड़कर शाकाहारी भोजन अपनाएं
– निश्चित समय और निर्धारित मात्रा में ही खाएं
– छह से आठ घंटे की नींद जरूर लें
उम्र का सैकड़ा, बीमारियों का स्कोर जीरो
मुरादाबाद। लाल गंगवारी गांव की रहने वाली बतुलन 105 साल की हैं। लेकिन बीमारियों का स्कोर जीरो है। वह कभी किसी बड़ी बीमारी की जद में नहीं आई। न तो उन्हें आम हो चुकी डायबिटीज जैसी बीमारी है और न ही ब्लड प्रेशर की बीमारी है। उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने संक्रमण के दो साल भी काट लिए। हकीमपुर गांव में जन्मी बतुलन का 15 वर्ष की आयु में लालपुर गंगवारी निवासी इस्माईल हुसैन से विवाह हुआ। उनके परिवार में दो बेटे और दो बेटियों हैं। बतुलन अब परदादी और परनानी बन चुकी है।
खुशमिजाजी और संतुलित आहार से जिंदगी का सैकड़ा किया पार
– दुबली पतली बतुलन ने खुशमिजाजी और संतुलित आहार से जिंदगी का सैकड़ा पार किया है। इस दौरान कई बाधाओं और कठिनाइयों को दूर किया। बतुलन परिश्रम, खुशमिजाजी और संयमित जीवन शैली को अपने स्वस्थ्य जीवन का आधार मानती हैं। वह आज भी हाथ की चक्की से आटे की रोटी खातीं हैं। घर की उगी सब्जियां और दाल उनका आहार है। वह दूसरे को भी खुश रहने की सलाह देतीं हैं। कहतीं हैं, अपना काम खुद करती हूं, जब भी मौका मिलता है परिवार के सदस्यों के बीच बैठ कर हंसी ठिठौली कर लेती हूं।
टेबल टेनिस नहीं थैलेसीमिया से जीत रहे कुनाल
मुरादाबाद। मुरादाबाद के टेबल टेनिस किलाड़ी कुनाल अरोरा बचपन से ही घातक बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित हैं। उन्हें हर पंद्रहवें दिन दो यूनिट रक्त चढ़ाया जाता है जो आज भी जारी है। बावजूद इसके कुनाल के जज्बे ने उन्हें अलग मुकाम पर खड़ा कर दिया। वह टेबिल टेनिस नेशनल चैंपियनशिप में तीन बार गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। उन्होंने एशियन पैरालंपिक चैंपियनशिप में भारत की टीम का हिस्सा बनकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था। कुनाल के पिता यशपाल अरोरा भी लॉन टेनिस के नेशनल खिलाड़ी हैं। उन्होंने बताया कि कुनाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीकॉम इसी वर्ष पूरा किया है। पिता ने बताया कि कुनाल स्पोर्ट्स में बेहद दिलचस्पी के कारण कभी अपनी बीमारी से निराश नहीं होता। उसने ठान लिया है कि बीमारी के साथ ही जीना है तो खुलकर जियेंगे।
क्या है थैलेसीमिया बीमारी
थैलेसीमिया बच्चे को माता पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है। जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। जिसके कारण उसे बार बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
हौसले और हिम्मत के उजाले से अंधेरे को दी मात
मुरादाबाद। दिल्ली रोड मझोला स्थित बैंक आफ बड़ौदा की शाखा में सभी की नजर कंप्यूटर से काम कर रहे सिर्फ एक ही लिपिक पर रहती है, लेकिन उसकी नजर सिर्फ ग्राहकों को अपने कार्यों से संतुष्ट करने में लगी रहती है। आंख नहीं रहते हुए भी वह अपने कार्यों से बैंक में ग्राहकों को मुरीद बना देता है।
मूलरूप से राजस्थान अलवर के रहने वाले ऋतुराज मीणा (27) दिल्ली रोड मझोला स्थित बैंक आफ बड़ौदा की शाखा में लिपिक पद पर कार्यरत हैं। उसे जन्म से ही दोनों आंखों से दिखाई नहीं देता है। लिपिक ने बताया कि वह चार भाइयों में सबसे बड़ा है। पिता मांगेलाल मीणा खेती का काम करते हैं। बचपन में वह अन्य बच्चों की तरह पढ़ लिखकर बड़ा आफिसर बनना चाहता था। इसी कारण आर्थिक कमजोरी के बावजूद पिता ने उसका एडमिशन अलवर के एक प्राइवेट अंध विद्यालय में करा दिया। अपनी लगन के चलते ऋतुराज क्लास में प्रथम आने लगा।
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