शिव की नगरी काशी में शनिवार को धनतेरस पर भगवान धनवंतरि के दरबार में श्रद्धालुआ पर आरोग्य अमृत कलश छलक उठा। कोरोना संक्रमण काल के बाद भगवान और भक्त के बीच की दूरियां खत्म हुईं तो श्रद्धालुओं के चेहरे भी खिल उठे। भगवान धनवंतरि के दर्शन एवं आरोग्य सुख प्राप्त करने के लिए सुड़िया स्थित धनवंतरि निवास पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। दर्शन-पूजन का सिलसिला अनवरत जारी है। भगवान धनवंतरि की यह मूर्ति भारत में एकमात्र है।
सुड़िया स्थित धन्वंतरि निवासी में सैकड़ों वर्ष पुरानी उनकी अनूठी प्रतिमा कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी तिथि धनतेरस पर आमजनों के दर्शन के लिए खोली जाती है। रजत सिंहासन पर करीब ढाई फुट ऊंची रत्न जड़ित मूर्ति साक्षात हरि के सामने खड़े होने का आभास कराती है। एक हाथ में अमृत कलश, दूसरे में शंख, तीसरे में चक्र और चौथे हाथ में जोंक तो दोनों ओर सेविकाएं चंवर डोलाती और दिव्य झांकी के दर्शन कर भक्त मंडली जयकार लगाती है।
वर्ष भर निरोग रहने के लिए देश-विदेश के दर्शनार्थी भगवान धनवंतरि के दर्शन का इंतजार करते हैं। श्रद्धालुओं को भगवान धनवंतरि के अमृत रूपी प्रसाद का वितरण किया जा रहा है। रात को ठीक 10 बजे मंदिर का कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया जाएगा। उसके बाद अगले साल धनतेरस को ही खुलेगा।
शनिवार को धनतेरस पर पांच ब्राह्मणों ने भगवान धनवंतरि की अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति को मुक्ताकाश में चांदी के छत्र के नीचे विराजमान कराया। विधि-विधान से पूजन, आरती और भोग लगाने के बाद शाम को पांच बजे मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया।
कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच दर्शनार्थियों को कतार से प्रवेश दिया जा रहा है। निरोगी एवं स्वस्थ तथा व्यवस्थित जीवन शैली जीने के लिए अपनी चारों भुजाओं में अलग-अलग वस्तुएं धारण करके स्वस्थ रहने का संदेश भगवान धनवंतरि दे रहे थे।
भगवान धनवंतरि के हाथ में एक अमृत कलश है जो संदेश देता है कि जल ही जीवन है, शरीर की आवश्यकता के अनुसार जल का सेवन करें। दूसरी भुजा में गिलोय के जरिए यह संदेश देते हैं कि हर जड़ी-बूटी का अपना महत्व है। उनका सेवन करने के साथ सम्मान भी दें।
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