- आधुनिकता छीन रही है कुम्हारों की रोजी रोटी
- टेराकोटा के दीये और वस्तूएं ग्राहकों को कर रही है आकर्षित
चंद्रपुर: देश का सबसे बडा त्यौंहार दीपावली रोशनी और ऊजाले का पर्व है. जिसकी वजह से बाजार मे फिर से रौनक दिखने लगी.हर घर में दीपावली की तैयारियां भी जोरों से चल रही. जिसकी वजहसे ग्राहक बाजार मे भटक रहे. मुख्य रूप से महिलावर्ग की भीड ज्यादा दिख रही है, क्योकि रोजमर्रा की जिंदगी में लगनेवाली वस्तुएं तथा त्यौंहारों मे लगनेवाली चीजो की मालुमात सबसे ज्यादा महिलाओं को रहती है, वही इसका इस्तेमाल भी करते है. दीपावली दीये जलाने और रोशनाई का त्यौंहार, इस ऊपलक्ष में बाजार मे एक से बढकर एक प्रकार के दीयों से बाजार सजा है.
स्वदेशी के बजाय विदेशी का आकर्षण
पारंपारिक कुम्हारों द्वारा बनाये गए दीये ,प्लास्टिक के दीये, मेटल के दीये ,टेराकोटा के दीये तथा नया आकर्षण गाय की गोबर से बने दीये, बाजार में भरपूर मात्रा में आये है. ऊसमे कुम्हारों व्दारा चाक पर बनाये दीये कुछ फीके पड़ने लग गये है. जिसकी वजह से पारंपरिक व्यावसायिक कुम्हारों के माथे पर चिंताए जरुर दिख रही है. बाजार मे आये ग्राहक आर्टिफिशियल दीये की ओर आकर्षित हो रहे. कुम्हारों को सुबहका लाया माल जैसा का वैसा शाम को वापिस घर ले जाना पड रहा. मोदी सरकार द्वारा स्वदेशी तरीकों से बनी वस्तूओं को बढावा देने के आह्वान का उपभोक्ताओं पर कोई असर नजर नहीं आ रहा है.
पीढियों से चले आरहे व्यवसाय पर गिरी गाज
बरसों से जिन दीयों से दीपावली के पर्व में चार चांद लगते थे, उनका निर्माण करने वाले कुम्हारों के घरों में अंधेरा छाने लगा है.खरीददारों की संख्या मे लगातार हो रही गिरावट से कुम्हार भी अब अपना पीढियों से चलते आ रहे व्यवसाय को कोस रहा है. और अपना घर चलाना भी ऊसको भारी लग रहा है.ग्राहक मिट्टी के दीये के बाजाय आर्टिफिशियल दीयों सें घरमे रोशनाई कर रहे है. .उससे कुम्हारों को अपने पीढियों से चलते आ रही कला से विमुख होना पड रहा हैं.
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