पंकज तिवारी, जबलपुर। जबलपुर में शिक्षा का केंद्र बनने की क्षमता भरपूर है। फिर भी प्रदेश में इंदौर जिला शिक्षा का मुख्य आकर्षक बना हुआ है। युवा 12वीं की पढ़ाई के बाद मप्र के इंदौर को आगे की पढ़ाई के लिए प्राथमिकता देते हैं। विश्वविद्यालय से लेकर तकनीकी, प्रबंधन (आइआइटी और आइआइएम को छोड़कर) से जुड़े सारे संस्थान जबलपुर में भी है, फिर भी विद्यार्थियों का भरोसा कायम नहीं कर पा रहे हैं। नतीजा हर साल सैकड़ों विद्यार्थी अन्य शहरों में करियर बनाने के लिए रवाना हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह सुविधा और संसाधन की कमी है। संस्थान तो खुले हैं, लेकिन वहां संसाधन ही नदारद हैं। शहर के शिक्षाविद् भी मानते हैं कि सुधार से ही शहर को शिक्षा का केंद्र बनाना संभव है।
इसलिए पिछड़े क्योंकि पढ़ाने वाले नहीं-
-रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद से बी ग्रेड मिला हुआ था। शिक्षकों की स्थिति ये है कि दशकों पहले तय पद 151 हैं। इसमें अब सिर्फ 30 के आसपास कार्यरत है। इस बीच दर्जनभर नए व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ तो हुए लेकिन यहां पर शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई। शिक्षकों के बिना संस्थान में विद्यार्थी आने से कतराते हैं।
– शासकीय जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज में भी शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद रिक्त बने हुए हैं। अतिथि शिक्षकों से शिक्षण कार्य कराया जा रहा है। नए कोर्स खोले गए लेकिन उनमें भी नियमित शिक्षक नहीं। तकनीकी विश्वविद्यालय के दर्जा पाने के लिए दावा करने वाले संस्थान में नए पाठ्यक्रमों के अलावा संसाधन में बढ़ोतरी की जरूरत है।
– धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय साल 2018 में बना। दो साल में संस्थान का कैंपस बनना था। अभी तक किराए की इमारत में चल रहा है। फैकल्टी से लेकर संसाधन तक पर्याप्त नहीं हैं। संस्थान को खर्च निकालने के लिए फीस बढ़ानी पड़ रही है।
– आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना 2011 में हुई थी। एक दशक बाद तक भवन पूरी तरह बनकर तैयार नहीं। विभागों में शिक्षकों की पर्याप्त संख्या नहीं होने से शोध कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
– वेटनरी विश्वविद्यालय की स्थापना 2009 में हुई थी। परिसर नया बन चुका है लेकिन सुविधा और संसाधन की कमी है। बजट कम होने की वजह से शोध करने में समस्या आती है।
– मप्र का सबसे पुराना जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय भी आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। शिक्षकों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं। शोध कार्य फंड नहीं होने के कारण प्रभावित हो रहे हैं।
– ट्रिपलआइटीडीएम संस्थान में भी शिक्षकों की कमी है। लंबे इंतजार के बाद संस्थान को भवन मिल पाया। देश के प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थानों की तुलना में यहां अभी अधोसंरचना और सुविधाओं को लेकर बहुत काम बाकी है।
शिक्षाविदों की सलाह –
– इंदौर का विकास तेजी से हुआ है, जबलपुर भी इस क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है। पहले की तुलना में विद्यार्थी बड़ी संख्या में जबलपुर में रहकर ही अध्ययन कर रहे हैं। कुछ सुविधाओं का विस्तार और करना होगा ताकि पढ़ाई के साथ करियर के लिए भी उन्हें यहां से बाहर नहीं जाना पड़े। विश्वविद्यालय में पिछले कुछ सालों में नए-नए पाठ्यक्रमों को प्रारंभ किया है, जिस वजह से यहां विद्यार्थियों का रुचि भी प्रवेश लेने में बढ़ी है। रोजगार के लिए कई प्लेसमेंट मेले लगाए जा रहे हैं।-प्रो.कपिल देव मिश्र, कुलपति रादुवि
व्यावसायिक पाठ्यक्रम में पिछड़े-
शिक्षण संस्थान तो खुले, लेकिन व्यावसायिक पाठ्यक्रम में हम इंदौर से काफी पीछे रह गए। इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में एक दशक पहले ही नए व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ कर दिए। बाजार की मांग के अनुरूप उसमें बदलाव हुए। ये काम यहां पर कम हुआ। पिछले कुछ दिनों से जरूर व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ हुए है जिसके कारण विद्यार्थी यहां रुझान बना रहे हैं। शिक्षकों की शिक्षण संस्थानों में कमी भी एक बड़ी वजह है।-डा.दीपेश मिश्र, उपकुलसचिव रादुवि
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तकनीकी शिक्षण संस्थानों की संख्या जबलपुर में पर्याप्त है। यहां विद्यार्थियों का प्लेसमेंट भी बड़ी संख्या में होता है। पहले एयर कनेक्टिविटी की वजह से जरूर समस्या थी, लेकिन पिछले कुछ सालों से हालात बदल चुके हैं। तकनीकी संस्थानों में गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए और प्रयास करना होगा। नए पाठ्यक्रम जो बाजार के मुताबिक हों, उन्हें प्रारंभ कर विद्यार्थियों का भरोसा बनाना होगा। – प्रो.प्रदीप झिंगे, प्राचार्य जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज
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जबलपुर में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाना होगा, रोजगार के अवसर अधिक पैदा करने होंगे। यहां शिक्षण संस्थान बहुत है लेकिन गुणवत्ता को लेकर विद्यार्थियों में जो नकारात्मक माहौल है उसे बदलने की जरूरत है। रोजगार के लिए बड़ी कंपनी और औद्यौगिक इकाइयों को लाने का प्रयास तेज हो तो विद्यार्थी यहां रुकें। नए और आधुनिक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जाएं। विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा के साथ रोजगार मिले तभी उनमें आकर्षण पैदा होगा।-प्रो.आर के श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष पर्यावरण विभाग शासकीय साइंस कालेज
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शिक्षा का मुख्य केंद्र बनने के लिए जबलपुर को इंदौर की तरह इन्फ्रास्ट्रक्चर, आवागमन की सुविधा बेहतर बनानी होगी। इस दिशा में काम निश्चित ही हो रहा है। इसके बावजूद अभी बदलाव तेज गति से जरूरी हो चुका है। प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी के लिए विद्यार्थी यहां रुकना चाहते हैं, लेकिन उन्हें यहां माहौल नहीं मिल पाता है। पढ़ाई के लिए विद्यार्थियों के लिए अलग क्षेत्र शहर में नहीं बन सका है। शिक्षण संस्थानों में भी रिक्त पद भरे जाने जाहिए, ताकि विद्यार्थियों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिल पाए। -डा.मनीष शर्मा, प्राध्यापक शासकीय साइंस कालेज
इंदौर-
– 09 विश्वविद्यालय इंदौर में संचालित हैं।
– इनमें 02 राज्य विश्वविद्यालय हैं।
– 07 निजी विश्वविद्यालय संचालित है।
– देवी अहिल्या विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय से विभिन्न जिलों के 226 कालेज संबंद्ध हैं। 2.5 लाख विद्यार्थी इनमें अध्ययन करते हैं।
– 227 शिक्षण संस्थान हैं इनमें तकनीकी, परंपरागत, व्यावसायिक पाठ्यक्रम शामिल हैं।
– आइआइटी और आइआइएम दोनों संस्थान एक ही शहर में होने का गौरव है।
– 28 संस्थान हैं, जहां मेडिकल शिक्षा दी जा रही है।
– 20 इंजीनियरिंग संस्थान हैं।
– 494 प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाने वाले छोटे-बड़े कोचिंग संस्थान है।
-3340 ट्यूटोरियल हैं इसमें आनलाइन समेत कोचिंग सेंटर, ट्यूशन, निजी ट्यूटोरियल आदि शामिल हैं।
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जबलपुर-
– 08 विश्वविद्यालय जबलपुर में संचालित हैं। एक नेशनल ला विश्वविद्यालय, चार स्टेट विश्वविद्यालय, दो निजी विश्वविद्यालय हैं।
– 1.5 लाख विद्यार्थी राज्य विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे हैं।
– 01 केंद्र का ट्रिपलआइटी डीएम संस्थान संचालित है।
– 109 संस्थान इसमें तकनीकी, परम्परागत, व्यावसायिक पाठ्यक्रम शामिल है।
– 14 संस्थान है, जहां मेडिकल शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रम संचालित होते हैं।
– 16 इंजीनियरिंग संस्थान हैं।
– 194 प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाने वाले छोटे-बड़े कोचिंग संस्थान हैं।
– 1020 ट्यूटोरियल हैं इसमें आनलाइन समेत कोचिंग सेंटर, ट्यूशन, निजी ट्यूटोरियल शामिल है।
Posted By: Mukesh Vishwakarma
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