रीना सिंह। भारत उन 175 देशों में से है, जिन्होंने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। काप 26 में जिस तरह से भारत ने 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा, वह भी अनुकरणीय रहा है। इस दिशा में देश ने जीवन जीने की स्वस्थ एवं पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने के रास्ते पर कदम बढ़ाया है। पांच शपथ के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से दिया गया पंचामृत का संदेश भी बहुत अहम है। चीन और अमेरिका के बाद भारत सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाला देश है। यदि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध युद्ध को जीतना है, तो उसमें भारत की भूमिका बहुत अहम होगी। दुनिया को भारत के प्रयासों से सीखना और उनका अनुकरण करना चाहिए।
भारत सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों केविकास में सहयोग के लिए नीतिगत स्तर पर कई पहल की है। देश में ग्रीन हाइड्रोजन पालिसी बनाई गई है और राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण कानून 2001 में संशोधन भी किया गया है। इनसे औद्योगिक क्षेत्र का कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी। हालांकि कोयले का प्रयोग भी चुनौती बना हुआ है। विद्युत मंत्रालय ने विशेषज्ञ कमेटी बनाई है, जो 2030 तक कोयला आधारित नए बिजली संयंत्र लगाने पर रोक के लिए प्रस्ताव तैयार करेगी। भारत ने वन क्षेत्र बढ़ाते हुए कार्बन सिंक को बढ़ाने की योजना
भी बनाई है।
भारत को इस दशक में चीजों को व्यवस्थित करने तथा 2070 तक उत्सर्जन मुक्त व्यवस्था तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। यह भी समझने की बात है कि कार्बन उत्सर्जन मुक्त व्यवस्था बनाना चुनौतीपूर्ण है और इसमें व्यापक निवेश की भी आवश्यकता होगी। इसलिए इसमें सफलता का बड़ा दारोमदार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाली वित्तीय सहायता पर भी रहेगा। भारत अभी तक 2030 के लक्ष्य की दिशा में सही तरीके से बढ़ रहा है और उसे वैश्विक स्तर पर औसत तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर थामने के लिए 2030 तक उत्सर्जन में और अधिक कटौती का प्रस्ताव आगे बढ़ाना होगा।
भारत इकलौता जी-20 देश है, जो पेरिस समझौते के तहत 2030 के लिए तय लक्ष्य के अनुरूप बढ़ रहा है। नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने और बिजली उत्पादन को कार्बन उत्सर्जन मुक्त करने की दिशा में भी भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत ने दिखाया है कि वह जलवायु परिवर्तन से लड़ने के प्रयासों का नेतृत्व करने में सक्षम एवं प्रतिबद्ध है।
[सीनियर फेलो, आइसीआरआइईआर]
Edited By: Sanjay Pokhriyal
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