2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की समयपूर्व रिहाई का एक विशेष न्यायाधीश और अभियोजन एजेंसी सीबीआई ने विरोध किया था. गुजरात सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में यह खुलासा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य से पूरा रिकॉर्ड मांगा था. आज शीर्ष अदालत में इन सभी दोषियों की समयपूर्व रिहाई के खिलाफ दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई होनी है.
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दस्तावेजों से पता चला कि मार्च 2021 में, विशेष न्यायाधीश आनंद एल यावलकर ने गोधरा उप-जेल के अधीक्षक को समय से पहले दोषियों की रिहाई पर राय व्यक्त करते हुए लिखा था कि दोषियों पर महाराष्ट्र का कानून लागू होगा, गुजरात का नहीं. कारण यह है कि मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हो रही है. इस मामले में सभी दोषी अभियुक्तों को निर्दोष लोगों के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी पाया गया. आरोपी की पीड़िता से कोई दुश्मनी या कोई संबंध नहीं था. अपराध केवल इस आधार पर किया गया था कि पीड़ित एक विशेष धर्म के थे. इस मामले में नाबालिग बच्चों और गर्भवती महिला को भी नहीं बख्शा गया. यह हेट क्राइम और मानवता के खिलाफ अपराध का सबसे खराब रूप है. यह जागरूक समाज को प्रभावित करता है. इस अपराध से समाज बड़े पैमाने पर व्यथित है. न्यायाधीश ने आगे लिखा कि जब कोई मामला कई श्रेणियों के अंतर्गत आता है तो उच्चतम कारावास पर विचार किया जाना चाहिए.
वहीं सीबीआई (CBI) मुंबई के एसपी नंदकुमार नैयर ने कहा था कि दोषी द्वारा किया गया अपराध जघन्य, ग्रेव और गंभीर है. इसलिए उपरोक्त आरोपी को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है और कोई नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए.
एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में, इन 11 लोगों को दोषी ठहराने वाले विशेष अदालत के न्यायाधीश ने कहा था कि छूट के फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.
बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत हुए न्यायमूर्ति यूडी साल्वी ने कहा कि सरकार के पास छूट देने की शक्ति है, लेकिन उसे कोई भी निर्णय लेने से पहले हर पहलू के बारे में सोचना चाहिए. मुझे नहीं पता कि सरकार ने पूरी प्रक्रिया पूरी की या नहीं. क्या उन्होंने उस जज से पूछा, जिसके तहत मामले की सुनवाई हुई. मैं आपको बता सकता हूं कि मैंने इस बारे में कुछ नहीं सुना. ऐसे मामलों में राज्य सरकार को केंद्र सरकार से भी सलाह लेने की जरूरत है. क्या उन्होंने ऐसा किया? मुझे पता नहीं है. अगर राज्य सरकार ने सलाह ली तो केंद्र सरकार ने क्या जवाब दिया?
जनवरी 2008 में मुंबई की विशेष अदालत ने 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा. अब सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनि अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य व्यक्ति की रिहाई को चुनौती देने वाली तीन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होनी है.
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