highlights
- बाइडन के कार्यकाल के डेढ़ साल बाद आई नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति
- भारत को प्रमुख रणनीतिक साझेदार बता साथ लेकर चलने की बात
- चीन और रूस को वर्तमान और भविष्य के लिए बड़ी चुनौती माना गया
नई दिल्ली:
मार्च 1983 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने ‘रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा’ के मसले पर देश को संबोधित किया था. उन्होंने कहा, ‘हम अपनी सैन्य शक्ति को मजबूती देना जारी रखेंगे. यदि हम इस प्रक्रिया के बीच में ही रुक जाते हैं, तो हमारे दोस्तों और विरोधियों के बीच गलत संदेश जाएगा. हम उन्हें अपनी कमजोर इच्छा शक्ति का संदेश देने का काम करेंगे. मेरा मानना है कि स्वेच्छा से लोगों को स्वतंत्रता के साथ जीना चाहिए. इसके साथ ही खुली बहस और लोकतांत्रिक साधनों से उन चुनौतियों का सामना करना चाहिए, जिसे अधिनायकवादी मजबूरी की तरह पेश कर रहे हैं.’ राष्ट्र के नाम इस संबोधन के तीन साल बाद रीगन ने गोल्डवॉटर-निकोलस डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस रीऑर्गनाइजेशन अधिनियम पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसने अमेरिकी सेना की कमान संरचना में आमूल-चूल बदलाव लाने का काम किया. इस अधिनियम का उद्देश्य वियतनाम युद्ध, 1980 में ईरान में अमेरिकी बंधकों को छुड़ाने के असफल प्रयास समेत ऐसी ही अन्य घटनाओं से जुड़ी चुनौतियां को हल निकालना था. वास्तव में गोल्डवॉटर-निकोल्स अधिनियम ने अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को कानूनी आधार प्रदान किया है, जो उसकी सुरक्षा चिंताओं समेत समग्र चुनौतियों और उनसे निपटने की योजनाओं को सामने लाता है. इसके साथ ही यही आधार अमेरिकी कांग्रेस और प्रशासन को सामरिक रणनीति की एक आम समझ भी प्रदान करता है.
पहले के राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के संस्करण
कार्नेगी इंडोवमेंट में अमेरिकी स्टेटक्राफ्ट प्रोग्राम के निदेशक क्रिस्टोफर एस चिविवि ने नवंबर 2021 में लिखा, ‘राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश और बिल क्लिंटन की रणनीतियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक विस्तृत भूमिका को अपनाया. इसके तहत अमेरिका के वैश्विक वर्चस्व को सुनिश्चित करने, लोकतंत्र के प्रसार को बढ़ावा देने और वैश्विक सुरक्षा को नए सिरे से स्थापित करती नीतियों का प्रचार-प्रसार शामिल था.’ चिविवि आगे लिखते हैं, ‘बतौर राष्ट्रपति 2002 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति ने एक अधिक सैन्यवादी दृष्टिकोण को अपनाया, जिसने दुनिया को स्वतंत्र और मुक्त राष्ट्रों में विभाजित किया. इसने आतंक के खिलाफ युद्ध की आवश्यकता पर बल दिया और विवादास्पद तरीके से पहले ही आगे बढ़ सैन्य शक्ति के प्रयोग का समर्थन किया.’ दुनिया भर में छाई ‘बड़े पैमाने पर मंदी’ समेत इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप के साथ सामने आई समस्याओं ने तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में कम महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की रूपरेखा तैयार की गई. हालांकि इसमें भी वैश्विक सुरक्षा को स्थापित करती नीतियों पर जोर दिया गया था. चिविवि कहते हैं डोनाल्ड ट्रंप की रणनीति अमेरिकी संप्रभुता के एक खास नजरिये पर बहुत अधिक केंद्रित रही. खासकर सीमा सुरक्षा पर अधिक जोर देते हुए अमेरिकी गठबंधनों के महत्व को दूसरे पायदान पर रखा गया.
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जो बाइडन की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति
मार्च 2021 में जारी अंतरिम राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन ने अमेरिका की नाटो के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की. बाइडन ने कहा, ‘वॉशिंगटन
दुनिया को यह प्रदर्शित करके रहेगा कि लोकतंत्र अभी भी हमारे लोगों का उद्धार कर सकता है.’ इसके साथ ही उन्होंने अमेरिकी लोकतंत्र की रक्षा करने, उसे मजबूत करने और फिर इसे नवीनीकृत करने की कसम भी खाई. अब बुधवार को अपने डेढ़ वर्ष के कार्यकाल के बाद जो बाइडन की हालिया राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति ‘निर्णायक दशक’ पर केंद्रित है. इस नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में उन तरीकों की रूपरेखा पेश की है जिसके तहत अमेरिका अपने महत्वपूर्ण हितों को आगे बढ़ाएगा और एक स्वतंत्र, मुक्त, समृद्ध और सुरक्षित दुनिया की पहल करेगा. यानी ‘हम अपने सामरिक प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ने के लिए अपनी राष्ट्रीय शक्ति के सभी तत्वों का लाभ उठाएंगे, साझा चुनौतियों से निपटेंगे और इसके लिए जरूरी मार्ग के नियमों को आकार देंगे.’ यह राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति अमेरिका के राष्ट्रीय हितों की जड़ों से जुड़ी हुई है. यानी अमेरिकियों की सुरक्षा सुनिश्चत करना, आर्थिक अवसरों को विस्तार देना और अमेरिकी जीवन शैली के केंद्र में लोकतांत्रिक मूल्यों को जीते हुए उनकी रक्षा करना.
नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के केंद्र में है चीन
अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बाइडन की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति ने तीन व्यापक लक्ष्यों को चिन्हित किया हैः
- अमेरिकी शक्ति और प्रभाव के अंतर्निहित स्रोतों और उपकरणों में निवेश;
- वैश्विक रणनीतिक वातावरण को आकार देने और साझा चुनौतियों को हल कर सामूहिक प्रभाव बढ़ाने के लिए दुनिया के अन्य राष्ट्रों के साथ मजबूत संभावित गठबंधन;
- अमेरिकी सेना का आधुनिकीकरण करते हुए उसे मजबूत बनाना ताकि वह सामरिक प्रतिस्पर्धा के युग के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके.
वास्तव में बाइडन को नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा पर कहीं ज्यादा केंद्रित है. एनएसएस में जिक्र किया गया है, ‘सबसे अधिक दबाव वाली चुनौती हमारे सामने विद्यमान है. जब हम एक स्वतंत्र, समृद्ध और सुरक्षित दुनिया की बात करते हैं तो हमारा सामना उन शक्तियों से होता है जो एक संशोधित विदेश नीति के साथ आक्रामक सत्तावादी शासन की अवधारणा पर चल रहे हैं.’ एनएसएस में चीन पर कहा गया है, ‘हम चीन के जनवादी गणराज्य के साथ प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करेंगे, जो दो इरादे रखने वाला एकमात्र प्रतियोगी है. वह वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने की क्षमता रखता है और खतरनाक रूस के साथ कहीं बड़ी चुनौती बन रहा है.’ राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में इसके साथ ही ‘साझा चुनौतियों’ का भी जिक्र किया गया है… ‘पूरी दुनिया के लोग सीमाओं से परे साझा चुनौतियों के प्रभावों का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. भले ही वह जलवायु परिवर्तन हो, खाद्यान्न असुरक्षा हो, फैलने वाली बीमारियां हो या बढ़ती महंगाई हो. ये साझा चुनौतियां सीमांत मुद्दे नहीं हैं जो भू-राजनीति के लिए गौण हैं. वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल में हैं और उनके प्रति एक ही रवैया अपनाना होगा.’
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भारत के साथ सहयोग
लोकतंत्र और समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग के संबंध में बाइडन की हालिया एनएसएस में भारत का भी उल्लेख है. खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र और क्वाड के संदर्भ में. एनएसएस में कहा गया है, ‘भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और एक प्रमुख रक्षा भागीदार है. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत का समर्थन करते हैं और इसके लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रूप से मिलकर काम करेंगे. हम लोकतंत्रों और समान विचारधारा वाले अन्य देशों के साथ अपना सहयोग और बढ़ाएंगे. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, अमेरिका का क्वाड संगठन हो या अमेरिकी-यूरोपीय संघ व्यापार और तकनीकी काउंसिल, ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंग्डम, यूनाइटेड स्टेटस) से लेकर आई2-यू-2 (भारत, इजरायल,संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका).
हम मजबूत, लचीली और पारस्परिक रूप से मजबूत संबंधों का एक तंत्र तैयार कर रहे हैं. हमारी अवधारणा यही है कि लोकतंत्र अपने लोगों और दुनिया को बहुत कुछ प्रदान कर सकता है.’ क्वाड का जिक्र कर एनएसएस में कहा गया है, ‘क्वाड क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी क्षमता को प्रदर्शित कर चुका है. इसके अलावा कोविड-19 से लड़ते हुए जलवायु परिवर्तन से लेकर साइबर सुरक्षा से जुड़ी साझेदारियां भी सामने हैं. इसके लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंध आधारभूत संरचना समेत स्वास्थ्य सुरक्षा देने के लक्ष्य पर भी काम करेंगे.’ जी-7 के संदर्भ में भी भारत का जिक्र किया गया है. जी-7 अपने सबसे मजबूत स्थिति में है जब यह औपचारिक रूप से अन्य देशों को गठबंधन के लक्ष्यों के साथ जोड़ता है. मसलन 2022 की जी-7 शिखर वार्ता को लें, जहां अर्जेंटीना, भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और यूक्रेन भी शामिल हुए थे. भारत के नजरिये से देखें तो महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एनएसएस मानता है कि चीन अमेरिका के लिए सबसे बड़ी भू-राजनीतिक चुनौती प्रस्तुत करता है. साथ ही रूस यूरोप की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए फिलवक्त और भविष्य के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे समय जब भारत-चीन बीते दो साल से गलवान हिंसक संघर्ष के बाद सीमा विवाद और इससे जुड़े रिश्तों में आई खटास से जूझ रहे, तब अमेरिका का राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में इसका जिक्र भारत के लिए बेहतर स्थिति है.
आतंकवाद और अफगानिस्तान
पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों का एनएसएस में उल्लेख नहीं है. हालांकि अफगानिस्तान में अमेरिकी युद्ध के समाप्त होने की बात है. इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका सुनिश्चित करेगा कि अफगानिस्तान संयुक्त राज्य अमेरिका या उसके सहयोगियों पर आतंकवादी हमलों के लिए फिर से एक सुरक्षित आश्रय के रूप में उभरने नहीं पाए. हम आतंकवाद के खिलाफ सार्वजनिक प्रतिबद्धताओं के लिए तालिबान को जवाबदेह ठहराएंगे. एनएसएस में कहा गया है, ‘हमने अफगानिस्तान में अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध समाप्त किया. इसके भी बहुत पहले ओसामा बिन लादेन और अल-कायदा के अन्य प्रमुख नेतृत्व को खत्म कर न्याय का उद्देश्य प्राप्त किया. हमें अल-कायदा, आईएसआईएस और उससे जुड़ी ताकतों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की अपनी क्षमता पर पूरा भरोसा है.’ इसने यह भी कहा कि आज का आतंकवादी खतरा दो दशक पहले की तुलना में वैचारिक रूप से अधिक विविध और भौगोलिक रूप से फैला हुआ है. अल-कायदा, आईएसआईएस और संबद्ध आतंकी संगठनों ने अफगानिस्तान और मध्य पूर्व से अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया तक में विस्तार कर लिया है.
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