Udaipur: राजस्थान के उदयपुर के तीन पुराने दोस्त, नाम रविकांत अमोलिक, सुंदरलाल खमेसरा और घीसूलाल मेहता. तीनों की वर्तमान उम्र 83/84 साल है. घीसूलाल मेहता और सुंदर लाल खमेसरा पढ़ाई के बाद अपने अपने व्यवसाय में लग गए. कुछ वर्षों पहले घीसूलाल भोपाल में अपने बच्चों के साथ व्यवसाय में जुड़ गए.
बता दें कि दास्तान-ए-दर्द तीसरे दोस्त रविकांत का है. उन्होंने उदयपुर में पढ़ाई के बाद, विद्या भवन में नौकरी की. भोपाल की एक लड़की से शादी हुई. एक पुत्र हुआ. उसे अच्छी शिक्षा दिलाई. सेवानिवृति के बाद उदयपुर का मकान बेच कर भोपाल चले गए. वजह थी वहां सुसराल पक्ष के काफी लोग थे, जहां उनका मन लग गया. कुछ समय बाद पुत्र ने भी शादी कर ली. भोपाल में ही कोई व्यवसाय किया, उसमें उसे नुकसान होने से कर्जा हो गया. रविकांत ने अपने जीवन भर की बचत से बच्चे का कर्जा चुकाया. इसके बाद पुत्र अपनी बीवी के साथ न्यूजीलैंड चला गया, वहां भी वो कर्जे में फंस गया.
मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुआ बेटा
पिता ने पुत्र मोह में अपनी सारी संपत्ति, पत्नी के जेवर आदि बेच कर उसे रुपए भेज दिए. अपेक्षा के मुताबिक रकम नहीं मिलने से उसने अपने माता पिता से रिश्ते सदा के लिए समाप्त कर लिए और न कोई पत्र, न कोई फोन, न आना जाना. इस सदमे से माता का निधन हो गया, लेकिन मां को कंधा देने, उनके अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ. अब रविकांत अकेले हो गए. छत भी नहीं रही. बुढ़ापे में कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं रहें. सुनना और दिखना भी कम हो गया और बीमारियों ने घेर लिया. लकड़ी के सहारे चल फिर सकते थे. अपनी पुरानी छोटी गाड़ी ही उनका आसरा बन गई. उसमें सामान रखते थे, उसी में सोते थे. कहीं सुलभ शौचालय में नहा धो लेते. थोड़े बहुत जो पैसे बचे थे, उससे कहीं कुछ खा लेते थे. रिश्तेदार तो थे लेकिन दो तीन पीढ़ी बाद के सभी लोगों ने उनसे दूरी बना ली थी.
पुराने दोस्त ने बढ़ाया मदद का हाथ
इस बीच भोपाल निवासी पुराने दोस्त घीसूलाल की दुबारा उनके जीवन में एंट्री होती है. वे वहीं अपने कार्यालय में उनके रहने की अस्थाई व्यवस्था और खाने पीने का इंतजाम करते हैं. घीसूलाल ने उदयपुर के दोस्त सुंदरलाल से इसकी चर्चा की. दोनों ने यह निर्णय किया कि उदयपुर में तारा संस्थान के वृद्धाश्रम में उन्हें सहारा दिलाया जाए. सुंदरलाल ने पुराने दोस्त की मदद के लिए स्वयं तारा संस्थान जाकर जानकारी ली. संतुष्ट होने पर रविकांत को यहां बुलाया. घीसूलाल उन्हें भोपाल से एसी बस द्वारा उदयपुर लेकर आए. बस स्टैंड पर सुंदरलाल ने उन्हें रिसीव किया.
वृद्धाश्रम में दिलाया सहारा
सुंदरलाल रविकांत को तारा संस्थान के वृद्धाश्रम ले गए. उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन देकर मन में एक संतोष का भाव लेकर घर ले गए. रविकांत अपना नया मुकाम पाकर संतुष्ट हैं. उन्हें भरोसा है कि उनका शेष जीवन यहां उन्हीं के जैसे अन्य वृद्ध और बेसहारा लोगों के साथ कट जाएगा. लिखने और पढ़ने के शौकीन रविकांत के लिए समय काटना समस्या नहीं है. 84 वर्ष की उम्र में भी वे हिम्मत, आत्मविश्वास और जज्बे से परिपूर्ण हैं. हिंदी और अंग्रेजी में बहुत तरीके से बात कर लेते हैं. दिलीप कुमार और देवानंद के प्रशंसक रहें. उनकी कोई फिल्म नहीं छोड़ी.
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