India Azerbaijan Relation
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पाकिस्तान के साथ गहराते संबंधों के बावजूद अजरबैजान इस बात को लेकर सचेत है कि यह भारत के साथ रिश्तों की कीमत पर नहीं हो। भारत और अजरबैजान ने कई भू-राजनीतिक मतभदों के बावजूद सहयोग की शुरुआत की है। हालांकि भारत ने अजरबैजान को ब्रिक्स की बैठक में आमंत्रण से परहेज किया। लंदन के अजरबैजानी दूतावास पर चार अगस्त को शिया कट्टरपंथी समूह के हमले के बाद उसने एनएएम देशों के साथ अजरबैजान के घोषणापत्र पर खुद तो हस्ताक्षर किए ही नहीं, भूटान को भी रोक दिया।
न्यू ईस्टर्न यूरोप पत्रिका में छपे लेख में बाकू के टोपचुबास्होव केंद्र के शोधकर्ता महाम्मद माम्माडोव ने यह बात कही। दोनों देशों के बीच मतभेद मुख्यतया नागोर्नो-कराबाख और कश्मीर मुद्दे पर कूटनीतिक रुख के कारण हैं, लेकिन नई दिल्ली और बाकु के बीच तेजी से बढ़ते आर्थिक रिश्तों के कारण यह लंबे समय तक चलने वाला नहीं।
भारत ने कराबाख पर सैद्धांतिक रुख बरकरार रखते हुए आर्मेनिया के पक्ष में खड़ा होना चुना है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अजरबैजान से आक्रामकता रोककर तत्काल लड़ाई बंद करने को कहा है। उधर, पाकिस्तान के साथ अजरबैजान की सहभागिता अच्छे दौर में है। दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और सेना को शिक्षित करने के अभियान चल रहे हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मिला है मौका
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगाए गए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण अजरबैजान और भारत को मौका मिला है कि वह मतभेदों को परे रखकर एक-दूसरे को लाभ पहुंचाने वाले क्षेत्रों में सहयोग करें। वर्ष 2022 के पहले छह माह के दौरान भारत अजरबैजान का चौथा सबसे बड़ा निर्यात साझीदार है।
उधर, चीन भी रूस को पीछे छोड़कर यूरोप और मध्य पूर्व तक पहुंचने के नए रास्ते तलाशने के लिए बेचैन है। उसके ऐसा करने से दक्षिण काकेशस क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है। पिछले दशक में चीन अपने बीआरआई प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रूस को छोड़कर यूरोप तक पहुंचने का रास्ता बनाने में जुटा था। मध्य पूर्व, चीन, रूस और यूरोप के बीच होने के कारण दक्षिण काकेशस क्षेत्र का खासा रणनीतिक महत्व है।
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