प्रतीकात्मक तस्वीर।
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आज की जीवन-शैली में अपनाए जा रहे मनचाहे रिश्तों ने नई तरह की असामाजिकता, असुरक्षा और अपराध के आंकड़े बढ़ाए हैं। राजधानी दिल्ली में मुंबई की एक लड़की के साथ हुआ वीभत्स अपराध इसी की बानगी है। दिल दहलाने वाली इस घटना में लंबे समय तक साथ रहने के बाद पीड़िता द्वारा शादी के लिए दबाव बनाने पर लिव-इन पार्टनर ने अपनी 26 वर्षीय साथी की न केवल बेरहमी से गला घोंटकर हत्या कर दी, बल्कि उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर जंगल में फेंक दिया। बेटी का फोन नंबर बंद रहने और उसकी कोई खबर न मिलने पर पिता ने एफआईआर दर्ज करवाई, तो हत्या के पांच महीने बाद इस हत्याकांड का खुलासा हुआ।
यह कटु सच है कि लिव-इन संबंधों में आए दिन घरेलू हिंसा, मौखिक दुर्व्यवहार और बर्बरता से हत्या के मामले सामने आते हैं। हाल ही में जोधपुर में भी लिव-इन में रह रहे साथी को नशा करने पर रोकने-टोकने के चलते पार्टनर ने गुस्से में गला दबाकर लड़की की जान ले ली थी। कुछ दिन पहले दिल्ली में ही एक और महिला की लिव-इन पार्टनर द्वारा हत्या कर लाश को हाइवे पर फेंकने की घटना सामने आई। पिछले महीने मध्य प्रदेश के शिवपुरी में लिव-इन रह रही महिला ने साथ रहने से मना किया, तो पार्टनर ने पत्थर से सिर कुचलकर हत्या कर दी। ऐसी घटनाओं के समाचार देश के कोने-कोने से आते रहते हैं।
मौजूदा दौर में लिव-इन रिलेशनशिप से उपजी असुरक्षा इतनी बढ़ गई है कि कई बार न्यायालय द्वारा भी ऐसे रिश्तों पर तीखी टिप्पणी की गई है। बीते दिनों यौन उत्पीड़न के मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने लिव-इन संबंधों को अभिशाप बताते हुए उसे नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सांविधानिक गारंटी का बाई-प्रोडक्ट बताया था। दरअसल, लिव-इन रिश्तों में असुरक्षा और अपूर्णता हमेशा से बनी हुई है। एक-दूसरे का साथ पाकर भी सहजीवन के रिश्ते में भीतर के खालीपन और भय का माहौल हमेशा बना रहता है।
ऐसे अधिकतर रिश्तों का कोई भविष्य नहीं होता। कुछ समय पहले ऑरमैक्स मीडिया द्वारा भारत के 40 शहरों में युवाओं को लेकर किए गए एक अध्ययन में 72 फीसदी युवाओं ने माना कि लिव-इन रिलेशनशिप विफल रहते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से भी सहजीवन के रिश्ते में भावनात्मक धरातल पर रिक्तता ही देखने को मिलती है। ऐसी बर्बर घटनाएं ऐसे ही रीतेपन का नतीजा हैं। यही वजह है कि कुछ समय पहले उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप को शादी का दर्जा देने की बात कही थी, ताकि सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने से दूर कानूनी नियमों के जरिये ही सही इन संबंधों को स्थिरता और सुरक्षा दी जा सके।
आज के युवा-युवतियों के लिए यह समझना जरूरी है कि बिना जवाबदेही वाले लिव-इन संबंधों में विवाह संस्था जैसी भावनात्मक, सामाजिक और पारिवारिक सुरक्षा मिल पाना मुश्किल ही है। ऐसा नहीं है कि शादी के रिश्ते में सब सहज ही रहता है, पर दायित्वबोध और पारिवारिक जुड़ाव का भाव एक मजबूत पृष्ठभूमि बनकर मन-जीवन को थामता है। वैवाहिक संबंधों से जुड़ी सामाजिक स्वीकार्यता सुरक्षा और संबल देती है। सहजीवन के संबंधों में कोई बंधन नहीं होता, तो जिम्मेदारी का भाव भी नहीं होता है। कई मामलों में तो इन संबंधों की शुरुआत ही शोषण के इरादे से की जाती है। अफसोस कि सहजीवन के रिश्ते में भी लड़कियां ही ज्यादा ठगी जाती हैं।
वे अपने लिव-इन पार्टनर की अपेक्षा इन संबंधों को लेकर अधिक संवेदनशील होती हैं। एक समय के बाद अपने रिश्ते के भविष्य को लेकर आशंकित होने पर वे शादी कर घर बसाने के बारे मे सोचने लगती हैं। इन संबंधों में कितनी ही महिलाएं लिव-इन साथी द्वारा यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग का शिकार बनकर चुप्पी साध लेती हैं। यही नहीं, इन संबंधों में जन्मे बच्चों की जिम्मेदारी और सुरक्षा भी लंबे समय से बहस का मुद्दा बनी हुई है। इसलिए जरूरी है कि व्यक्तिगत पसंद के मुताबिक जीने की इच्छा रखने वाली लड़कियां न केवल प्रेम के सही मायने समझें, बल्कि अपने भविष्य और सुरक्षा के बारे में भी सोचें, अन्यथा कभी-कभी अपने ही निर्णय भारी पड़ जाते हैं।
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