रांची, राज्य ब्यूरो। जनगणना के कालम में जनजातीय समुदाय के लिए सरना धर्म कोड की मांग तूल पकड़ रही है। ओडिशा, बंगाल के बाद झारखंड की राजधानी रांची में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीरों के साथ इस संबंध में आंदोलन कर रहे आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रमुख सालखन मुर्मू की आवाज प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंच चुकी है। सालखन मुर्मू चार नवंबर को गुवाहाटी में इसी मांग को लेकर अगला प्रदर्शन करने वाले हैं। अपनी मांग के प्रति ध्यान आकृष्ट कराने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से समय मांगा था।
पांच राज्यों में रेलवे ट्रैक जमा करने की धमकी दी थी
पीएमओ ने इसपर संज्ञान लेते हुए उन्हें सूचित किया है कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि वे इस संदर्भ में केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात करें। पीएमओ से जवाब मिलने के बाद सालखन मुर्मू ने इस संबंध में तैयारी आरंभ कर दी है। वे इस मांग के संबंध में अपने तर्कों से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को अवगत कराएंगे। सालखन मुर्मू ने मांग नहीं माने जाने पर 30 नवंबर को झारखंड समेत बिहार, बंगाल, ओडिशा और असम में रेलवे ट्रैक जाम करने की चेतावनी दी है।
झारखंड सरकार का प्रस्ताव गृहमंत्रालय के पास लंबित
उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार की तरफ से भी इस आशय का प्रस्ताव केंद्रीय गृहमंत्रालय के समक्ष लंबित है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र आहूत कर जनजातीय समुदाय के लिए सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को प्रेषित किया था। इस मांग पर सभी दलों का समर्थन उन्हें मिला। हेमंत सोरेन एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इस सिलसिले में मुलाकात कर चुके हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू व प्रधानमंत्री मोदी पर पूरा भरोसा
आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रमुख और भाजपा के पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के मुताबिक उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर पूरा भरोसा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उनकी इस सिलसिले में भेंट हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें सर्वोच्च पद पर आसीन करने में अहम योगदान दिया है। यह आदिवासियों के मान-सम्मान, इतिहास और पहचान की याद दिलाने वाला महान कार्य है, जो शायद शताब्दी में एक बार हो सकता है। उन्हें राष्ट्रपति की ओर से सुझाव दिया गया कि आदिवासियों की जनगणना में पहचान संबंधी विषय प्रधानमंत्री के समक्ष रखना चाहिए। पांच आदिवासी बहुल राज्यों में जो सरकारें हैं, वह जनजातीय समुदाय की विरोधी हैं।
Edited By: M Ekhlaque
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