देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे (फाइल फोटो)।
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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जल्द ही पिछली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार का एक और अहम फैसला वापस ले सकते हैं। यह फैसला राज्य के विश्वविद्यालयों से जुड़ा है। दरअसल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पिछली एमवीए सरकार ने राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय अधिनियम 2016 में संशोधन किया था। इस अधिनियम में किया गया संशोधन राज्यपाल की शक्तियों को कम करता है और राज्य सरकार को कुलपति के पद पर नामों की सिफारिश करने का अधिकार देता है। अब महाराष्ट्र मंत्रिमंडल इसे वापस ले सकता है।
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को इस विधेयक को वापस लेने का फैसला किया है, जिसने राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतिओं की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को कम कर दिया था। महाराष्ट्र विधानसभा के 2021 के शीतकालीन सत्र में पारित संशोधन, राज्य के उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री को विश्वविद्यालयों के प्रो-चांसलर के रूप में भी नियुक्त करता है। उस समय विपक्ष में भाजपा ने संशोधन का विरोध किया था और विधेयक पारित होने के समय वाकआउट भी किया था। भाजपा ने दावा किया था कि संशोधन से विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी। यह विधेयक तत्कालीन उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री उदय सामंत द्वारा पेश किया गया था, जिन्होंने अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हाथ मिला लिया है, और वर्तमान में उद्योग मंत्री हैं। दिलचस्प बात यह है कि सामंत अब उसी कैबिनेट का हिस्सा हैं, जो संशोधन को वापस लेने वाली है।
संशोधन के अनुसार, समिति कुलपति के पद के लिए पांच नामों की सिफारिश करेगी। इसके बाद इन पांच नामों में से राज्य सरकार राज्यपाल को दो नामों का सुझाव देगी। राज्यपाल को कुलपति पद के लिए दो में से किसी एक नाम का चयन करना होगा। जहां तक प्रो-वाइस चांसलर की नियुक्ति का सवाल है, कुलपति राज्य सरकार को नाम सुझाएंगे और उसके बाद राज्य सरकार चांसलर (गवर्नर) को तीन नामों की सिफारिश करेगी। इन्हीं नामों में से एक को प्रो-वाइस चांसलर नियुक्त किया जाएगा।
महाराष्ट्र सार्वजनिक विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 में संशोधन करने वाले विधेयक को वापस लेने का निर्णय मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया। पिछली शिवसेना के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार द्वारा अधिनियम में संशोधन किया गया था। संशोधन का उद्देश्य राज्यपाल की शक्तियों पर अंकुश लगाना था, जिनके साथ तत्कालीन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के असहज संबंध थे। हालांकि, विधेयक को इस आधार पर मंजूरी नहीं दी गई थी कि यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के प्रावधानों के खिलाफ है।
शिंदे कैबिनेट की बैठक के बाद जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए विधेयक को वापस लेने का फैसला किया गया है। राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं। संशोधन से पहले कुलपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर एक वीसी की नियुक्ति की जाती थी, जिसमें चांसलर (गवर्नर) का एक नामांकित व्यक्ति शामिल होता था, जो सर्वोच्च न्यायालय या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और निदेशक या संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित राष्ट्रीय ख्याति के संस्थान के प्रमुख होते थे।
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