इन आँखों की तरुनाई मे,
हे प्रिय तुम पतित्व धर्म का
निज पथ भूल गयीमै भी कैसा पागल भोर
सबेरे पलको से इस पथ
को अकेले ही गुहार
करता रह गया !
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