गालिब इश्क को जीने वाले शख्स थे। अगर कहा जाए कि इश्क की शुरूआत ही गालिब से होती है, तो कुछ गलत नहीं होगा। उनकी हर शायरी इश्क को बयां करती थी। अगर आप गालिब की शायरी के दिवाने हैं और उन्हें करीब से महसूस करना चाहते हैं, तो दिल्ली में गालिब की हवेली घूमने जरूर जाना चाहिए। साहित्य और कला प्रेमियों को यह जगह काफी पसंद आती है। इस हवेली को देखकर आप मिर्जा गालिब के दौर में जरूर आ जाएंगे। मिर्जा गालिब की हवेली पुरानी दिल्ली की कासिम जान बल्लीमारान नाम की गली में स्थित है।
( सभी फोटो साभार : wikimedia commons)
गालिब की हवेली राष्ट्रीय धरोहर –
आपको बता दें कि मिर्जा गालिब की हवेली को भारतीय पुरातत्व विभाग ने धरोहर घोषित कर दिया है। इसलिए अगर आप दिल्ली गए हैं, तो इस राष्ट्रीय धरोहर को एक बार देखना तो बनता ही है। यहां जाने से पहले जान लें कि सोमवार को हवेली बंद रहती है। बाकी के अन्य दिनों में आप यहां विजिट कर सकते हैं। अंदर जाने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता। अगर आप मिर्जा गालिब को नजदीक से महसूस करना चाहते हैं, तो इस हेवली की यात्रा जरूर करनी चाहिए।
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गालिब की हवेली का इतिहास –
गालिब मूलत: आगरा के रहने वाले थे। उनका जन्म 1797 को काला महल नामक एक जगह पर हुआ था। गालिब 11 साल की उम्र में ही दिल्ली चले गए थे। 5 साल की उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया था। इसलिए उनका पालन पोषण उनके चाचा ने किया। 1812 की उम्र में उन्होंने 13 साल की उमराव बेगम से शादी की। दिल्ली वही जगह है जहां असदुल्ला बेग खां ने गालिब के नाम से शायरी लिखना शुरू किया। इसलिए कहा जाता है कि गालिब का जन्म दिल्ली में हुआ।
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जीवन के आखिरी साल इसी हेवली में बिताए –
कहते हैं कि गालिब ने आखिरी साल इसी घर में बिताए थे। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने यह घर कभी खरीदा नहीं थी, बल्कि एक हकीम ने उन्हें उपहार के तौर पर इसे भेंट किया था। 15 फरवरी 1869 को कोमा में जाने के बाद उनकी मौत हो गई।
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आएगा मुगल काल वाला फील –
अगर आपको इतिहास से प्रेम है और आप मुगल काल का जमाना देखना चाहते हैं, तो गालिब की हवेली जरूर जाएं। उनकी मृत्यु के बाद समय के साथ यह छोटी सी हवेली एक कारखाने में तब्दील हो गई थी, लेकिन दिल्ली सरकार ने इसका जीर्णोद्धार करके इस हवेली को एकदम मुगल काल वाला रूप दे दिया। इस हवेली में उन्हाेंने ऊर्दू और पारसी में दीवान की रचना की थी। इस हवेली में गालिब से जुड़ी कई चीजों और उनकी रचनाओं को सहेज कर रखा गया है। ऐसा मौका आपको शायद ही कहीं मिले।
गालिब की हेवली में क्या देख सकते हैं –
हवेली में दाहिने ओर आप कुछ तस्वीरें और कवि की एक पत्थर की मूर्ति देख सकते हैं। कवि की जीवन शैली को चित्रित करने के लिए यहां आंगन में कई तस्वीरें लगी हुई हैं। एक कांच के बॉक्स में गालिब की कविताएं खूबसूरती से संजोई गई है, जिनकी आप तस्वीर भी ले सकते हैं।
कैसे पहुंचें मिर्जा गालिब की हेवली –
कार से मिर्जा गालिब की हवेली जाना सही नहीं है। क्योंकि जहां उनकी हेवली है, वहां की गलियां काफी संकरी हैं। इसलिए बेहतर है कि आप मेट्रो से चावड़ी बाजार तक जाएं। यहां से गालिब की हवेली नजदीक है। लाखों की तादाद में भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक, साहित्य प्रेमी और केला प्रेमी भी गालिब की हेवली को देखने के लिए पहुंचते हैं।
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