युवराज गुप्ता, बड़वानीः धर्म, आस्था और प्रकृति प्रेम एक साथ अनुभव करना हो तो मध्य प्रदेश में सतपुड़ा की हरित वादियों में स्थित दिगंबर जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र बावनगजा अद्भुत स्थान है। यहां भगवान आदिनाथ की देश की दूसरी सबसे ऊंची 84 फीट ऊंची पाषाण मूर्ति को नमन कर आशीर्वाद लेने के साथ आसपास के मनोहारी वातावरण में पर्यटन का सुख लिया जा सकता है। हरे-भरे पहाड़ और वादियां, कल-कल बहते झरनों वाले बावनगजा की यात्रा किसी हिल स्टेशन का अनुभव कराती है। जैन संत और उनके शिष्य व अनुयायी जप, तप साधना के लिए भी विशेष रूप से आते हैं। तपोभूमि के रूप में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह के कारण ही यह सिद्धक्षेत्र कहलाता है।
विश्व की दूसरी बड़ी मूर्ति यहां पर
बावगनजा में एक पत्थर पर बनी 84 फीट ऊंची भगवान श्री आदिनाथ की मूर्ति के बारे में दावा किया जाता है कि यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है। देश में सबसे ऊंची 108 फीट की भगवान आदिनाथ की मूर्ति महाराष्ट्र के नासिक के पास मांगीतुंगी में है। कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 57 फीट ऊंची मूर्ति विराजित है। सिद्धक्षेत्र बावनगजा ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष शेखरचंद्र पाटनी, प्रबंधक इंद्रजीत मंडलोई, जितेंद्र जैन एवं मनीष जैन के अनुसार बावगनजा के आसपास पहाड़ियों पर खुदाई के दौरान कई जैन मूर्तियों के भग्नावेष मिले हैं। इनमें पोखलिया, पलसूद के समीप वझर गांव में प्राचीन मूर्तियां विराजित हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यवस्थाएं की गई हैं। बाहर से आने वाली तीर्थयात्रियों के लिए ठहरने की व्यवस्था भी है।
सिद्धक्षेत्र बावनगजा में भिगवान आदिनाथजी की 84 फीट ऊंची मूर्ति विराजित है। ड्रोन से लिया चित्र। फाइल फोटो
12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक मेला
हर 12 वर्ष में बावनगजा में विशेष महामस्तकाभिषेक मेला लगता है। इसमें भगवान की बड़ी मूर्ति का सतरंगी अभिषेक किया जाता है। वार्षिक मेला माघ माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को लगता है। इसमें भगवान का मोक्ष कल्याणक मनाया जाता है। भगवान आदिनाथजी को निर्वाण लाड़ू चढ़ाकर चरणाभिषेक किया जाता है। प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।
एक दर्जन से से ज्यादा झरने
बड़वानी से बावनगजा के बीच एक दर्जन से अधिक प्राकृतिक झरने पर्यटकों को लुभाते हैं। वर्षा के दिनों में पर्यटक इन झरनों में नहाने व पिकनिक मनाने का आनंद लेते हैं। बावनगजा के चूलगिरी पर्वत के समीप स्थित दूसरे पर्वत पर चेतना केंद्र भी विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। बादलों से ढकने पर उक्त पर्वत व आसपास के पहाड़ रोमांचित करते हैं।
कुंभकर्ण व इंद्रजीत तप कर हुए थे मोक्षगामी
जैन मतानुसार चूलगिरी शिखर से रावण के पुत्र इंद्रजीत एवं भाई कुंभकर्ण कठोर तपस्या कर मोक्ष को प्राप्त हुए थे। अत: यह सिद्ध क्षेत्र है। भगवान आदिनाथ की मूर्ति के सामने मंदोदरी पर्वत पर मंदोदरी महल है। यहां पर मंदोदरी ने भी तपस्या कर आर्यिका दीक्षा प्राप्त की थी।
इस तरह पहुंचें
बड़वानी से इंदौर करीब 150 किमी दूर है जो देश के प्रमुख शहरों से रेल व हवाई मार्ग से जुड़ा है। इंदौर विमानतल या रेलवे स्टेशन से कार या अन्य वाहन के माध्यम से यहां पहुंचा जा सकता है। बड़वानी से एक अन्य प्रमुख रेलवे स्टेशन खंड़वा की दूरी 200 किमी है। ठहरने के लिए इंदौर, खंडवा और बड़वानी के साथ बावनगजा में भी होटल हैं।
इन मंदिरों के भी करें दर्शन
बावनगजा से करीब 60 किमी की दूरी पर सतपुड़ा की वादियों में बसा प्रसिद्ध नागतीर्थ शिखरधाम नागलवाड़ी है। जबकि 70 किमी दूर सेंधवा के समीप मप्र-महाराष्ट्र की सीमा पर मां बिजासन देवी का धाम है। बड़वानी से पांच किमी दूर पुण्य सलिला मां नर्मदा नदी के तट का भ्रमण भी स्नान-ध्यान का अवसर प्रदान करता है।
ये ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल भी दर्शनीय
बड़वानी से करीब 50 किमी दूर बाग की पांडवकालीन गुफाएं हैं। 80 किमी की दूरी पर खरगोन जिले के ऊन के ऐतिहासिक मंदिर हैं। यहीं जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र पावागिरी (ऊन) है। बावनगजा से 80 किमी दूर शहादा के पास नदी किनारे भी जैन तीर्थ हैं। 150 किमी दूर मांगीतुंगी क्षेत्र है। 40 किमी दूर तालनपुर में अतिशय क्षेत्र है।
Edited By: Sanjay Pokhriyal
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