जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। तकनीकी के दौर में हर क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। आदान-प्रदान को सुगम बनाने में तकनीकी की अहम भूमिका है। वहीं अफसोस की हम तकनीकी के जितने करीब जा रहे हैं, उतना ही संबंधों से दूर होते जा रहे हैं। एक छत के नीचे रहने के बावजूद हम आभासी दुनिया में खोए रहते हैं। हर कोई इंटरनेट मीडिया में खोया है। साथ-साथ रहने के बाद भी माता-पिता, भाई-बहन में दूरी बढ़ती जा रही है। इसके पीछे स्क्रीन टाइम का अनुशासन प्रमुख कारण है। संबंधों की मिठास बनाए रखने के लिए हमें डिजिटल संस्कारों को भी अपनाने की जरूरत है। दिन-रात मोबाइल, कम्प्यूटर व टीवी में समय बिताने के स्थान पर माता-पिता, भाई बहन, दादा-दादी को भी समय देने की आवश्यकता है।
तात्पर्य यह नहीं कि आप तकनीकी से दूर रहें। तकनीकी के इस युग में समय के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए हमें भी इन तकनीकों को अपनाना होगा। तकनीकी के कारण ही आज हम विश्व के किसी कोने में बैठकर अपने से बहुत दूर बैठे व्यक्ति से रूबरू संवाद कर सकते हैं। हमें किसी विषय पर जानकारी प्राप्त करना हो तो अपने स्मार्टफोन या कम्प्यूटर पर घर में बैठे- बैठे ही अनेक जानकारियां केवल एक क्लिक पर प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन हम सभी जानते हैं कि किसी भी तकनीकी में दोनों पहलू होते हैं, एक सकारात्मक एक नकारात्मक। उसी प्रकार डिजिटलाइजेशन के जहां कायदे अधिक हैं, वहीं कुछ अनचाहे नुकसान भी होते हैं। इन्हीं नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए स्क्रीन टाइम का अनुशासन बेहद जरुरी है। अर्थात हमें स्क्रीन पर कितना समय व्यतीत करना चाहिए, यह हमें स्वयं निर्धारित करना होगा। अपितु यह उपयोगकर्ता की आवश्यकता व कार्य की पूर्णता पर निर्भर करता है।
आत्म अनुशासन और विवेकशीलता किसी भी व्यक्ति में उसके संस्कारों व परिवेश पर निर्भर करता है, वही उचित निर्णय लेने में सक्षम होता है। किसी भी व्यक्ति के अंदर संस्कारों का बीजारोपण उसके घर और विद्यालय में होता है। एक संस्कारयुक्त और विवेकशील व्यक्ति ही स्वअनुशासन से अपने लिये उचित-अनुचित निर्णय ले सकता है।
-मंजुला शर्मा, प्राचार्य, शासकीय हाई स्कूल पचपेढ़ी, सिविल लाइन
Posted By: Mukesh Vishwakarma
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