बालेन्दु शर्मा दाधीच। देखते ही देखते शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक ने इतनी गहरी पैठ कर ली है कि तकनीक के प्रयोग के बिना आधुनिक शिक्षा अधूरी लगती है। वैसे तो डिजिटल कायाकल्प की यह प्रक्रिया कुछ दशकों से जारी थी लेकिन कोविड की महामारी के बाद आए बदलावों ने हालात तेजी से बदल दिए। स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी बंद रहे तब भी पढ़ाई जारी रही, परीक्षाएं जारी रहीं और संस्थान चलते रहे। हां, फिजीकली नहीं तो वर्चुअली सही। बहरहाल, आज बात आनलाइन शिक्षा और आन डिमांड शिक्षा से बहुत आगे बढ़ चुकी है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
मशीन अनुवाद, ध्वनि प्रोसेसिंग और कंप्यूटर विजन जैसी तकनीकें छात्र-छात्राओं और शिक्षकों सबकी मददगार बनी हैं। विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध पाठ्य सामग्री को तुरंत अनुवाद करके दूसरी भाषा की पाठ्य पुस्तकें तैयार करने का काम चल रहा है। निजी स्तर पर भी ऐसे कंटेंट को अनुवाद कर अपनी भाषा में पढ़ना संभव है। कंप्यूटर के जरिए पूरी की पूरी किताबों को कंप्यूटर की आवाज में सुनना भी संभव हो गया है। छपी हुई किताबों के चित्र खींचकर उन्हें टाइप किए हुए टेक्स्ट में बदला जा सकता है और फिर अनुवाद भी किया जा सकता है। इस तरह के चमत्कारिक प्रयोगों की कुछ साल पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। दिव्यांगजनों के लिए हालात बहुत बदल गए हैं। जो देख नहीं सकते, वे सुन सकते हैं और जो सुन नहीं सकते, वे शिक्षकों की ध्वनि को अक्षरों में बदलकर पढ़ सकते हैं। शिक्षा में रोबोट्स और बॉट्स (इंटेलिजेंट साफ्टवेयर) आ गए हैं जो शिक्षकों की ही तरह बच्चों को पढ़ा सकते हैं।
वर्चुअल रियलिटी
पढ़ते समय हम जिन चीजों या दृश्यों की कल्पना करते रहे हैं, अब वर्चुअल रियलिटी के दौर में उन्हें अपनी आंखों के सामने साक्षात देखना और महसूस करना संभव हो गया है। खास तरह के हेडसेट (जैसे माइक्रोसाफ्ट का होलोलेंस और फेसबुक का आक्यूलस हेडसेट) पहनने के बाद जब आप किसी वर्चुअल रियलिटी साफ्टवेयर का प्रयोग करते हैं तो चीजों को 3डी के स्वरूप में अपने आमने-सामने देख पाते हैं। मिसाल के तौर पर मेडिकल के छात्र अगर दिल के बारे में पढ़ रहे हैं तो वर्चुअल रियलिटी के जरिए वे वास्तव में एक व्यक्ति के शरीर को 3डी रूप में देख सकते हैं और फिर उसमें दिल के हिस्से पर फोकस करके खुद धड़कते हुए दिल को देख सकते हैं। अगर और गहराई से देखना चाहें तो इस वर्चुअल दिल की धमनियों के भीतर झांक सकते हैं, वहां से रक्त का प्रवाह होते हुए देख सकते हैं। अगर आप किसी ग्रह के बारे में पढ़ रहे हैं तो उस ग्रह को अपने सामने देख सकते हैं और उसके अलग-अलग इलाकों की वर्चुअल यात्रा कर सकते हैं। यदि दुनिया के सबसे मशहूर विज्ञान संग्रहालय में घूमना चाहते हैं तो वहां जाने के बजाय वर्चुअल रियलिटी के जरिए उसकी एकदम असली जैसी आभासी यात्रा कर सकते हैं।
मोबाइल आधारित शिक्षा
भारत जैसे देश में जहां जमीनी स्तर पर कंप्यूटरों की संख्या कम है, वहां मोबाइल फोन कंप्यूटर आधारित शिक्षा का विकल्प बनकर उभरा है। आज बहुत सारे स्टार्टअप मोबाइल के जरिए औपचारिक शिक्षा देने के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने में लगे हैं। इस छोटी सी स्क्रीन पर प्रैक्टिकल अभ्यास भी कराए जाने लगे हैं और होमवर्क से लेकर परीक्षाएं तक आयोजित होने लगी हैं। ट्यूशन में भी मोबाइल का प्रयोग होने लगा है। अगर आप शौकिया तौर पर कुछ सीखना चाहते हैं तो भी मोबाइल काफी है और किसी विषय पर उन्नत शोध कर रहे हैं तब भी मोबाइल का इस्तेमाल एक सहयोगी साधन के रूप में कर सकते हैं। फोन पर ही स्कूल-कालेजों की किताबें भी डाउनलोड होने लगी हैं तो उन्हीं पर उपयोगी वीडियो देखे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, दूसरे छात्र-छात्राओं के संपर्क में बने रहने, सूचनाएं लेने-देने और मिल-जुलकर काम करने में भी मोबाइल का अच्छा इस्तेमाल किया जा रहा है।
शिक्षा का गेमीफिकेशन
पढ़ाई को बोझिल बनने से बचाने के लिए तकनीक ने एक नया रास्ता निकाला है और वह है- गेमीफिकेशन। जिन विषयों को लंबे लेक्चर और अभ्यास के जरिए समझना-सीखना मुश्किल हो, उन्हें हल्के-फुल्के और मनोरंजक ढंग से सिखाने के लिए गेमीफिकेशन का प्रयोग किया जाता है यानी शिक्षा के कंटेंट को खेल में बदल दिया जाए जैसे वे कोई कंप्यूटर गेम या वीडियो गेम हों। सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पढ़ना और पढ़े हुए को याद रखना शायद मुश्किल लगे, लेकिन अगर आपको ऐसा कंप्यूटर गेम खेलने का मौका मिले जिसके भीतर सिंधु घाटी सभ्यता के मकान, लोग और घटनाएं होती हुई दिखाई दे रही हों तो आप उन्हें भूल नहीं सकेंगे। विमानों के बारे में पढ़ते समय अगर आपको फ्लाइट सिमुलेशन का गेम खेलने का मौका मिले तो क्या आप इस अनुभव को भूल सकेंगे? इस तरह के प्रयोग शिक्षा को ज्यादा दिलचस्प और असरदार बना रहे हैं।
आ रहा है मेटावर्स
यूडेमी, खान अकादमी, ईडीएक्स, लिंक्ड इन लर्निंग और भारत सरकार के स्वयं जैसे आनलाइन कोर्स आज एक सामान्य बात हो गए हैं। लेकिन आने वाले कुछ साल में आप ऐसे कोर्स को कंप्यूटर पर ही करने तक सीमित नहीं रहेंगे। आप उनकी वीडियो और टेक्स्ट सामग्री का इस्तेमाल करने तथा आनलाइन उत्तर देने तक ही सीमित नहीं रहेंगे। आप हकीकत में ऐसी कक्षाओं में दूसरे विद्यार्थियों के साथ बैठे होंगे और उसी तरह से पढ़ाई कर रहे होंगे जैसे कि आप किसी नियमित कक्षा में बैठे हैं। यह संभव होगा मेटावर्स (वर्चुअल दुनिया) के जरिए जो अगले दस साल में एक बड़ी हकीकत बन जाएगा। मेटावर्स डिजिटल माध्यमों पर संचालित आभासी दुनिया है जो एक वीडियो गेम जैसी है और इसमें आप और हम अपने-अपने वर्चुअल 3डी अवतारों के जरिए विचरण कर रहे होंगे। उस अद्भुत फंतासी दुनिया में वर्चुअल विश्वविद्यालय भी खुले होंगे और वर्चुअल कॉलेज भी, उन्हीं में पढ़ाई कर रहे होंगे अपने वर्चुअल अवतारों में मौजूद छात्र-छात्राएं। अगर आज भी शिक्षा में कोई दूरियां बची हैं तो मेटावर्स उन्हें काफी हद तक पाट देगा।
Edited By: Sanjay Pokhriyal
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