नई दुनिया का तसव्वुर करते,
कहाँ पे पा-ए-तफ़क्कुर करते।
मिले ख़्वाबों की गर ताबीर हमें,
पेश हम हुस्न-ए-तफ़ाख़ुर करते।
आब-जू बहते बीच सहरा में
ऐसे कुछ कार-ए-तहय्युर करते।
देखकर होती तसल्ली सबको,
इस तरह नए तनाज़ुर करते।
क़त्ल की साफ़ गवाही के लिए,
लोग क़ातिल को तक़र्रुर करते।
हम नहीं होते तो रक़ीब मेरे,
किसलिए अश्क-ए-तवातुर करते।
दोस्तों से है मोहब्बत 'गौतम',
उनके दम पर हैं तफ़ाख़ुर करते।-डॉ. कुँवर वीरेन्द्र विक्रम सिंह गौतम
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1 hour ago
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