पोटैटो टेक्नोलॉजी केंद्र शामगढ़ में लगे आलू।
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माई सिटी रिपोर्टर
करनाल। आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ (करनाल) का केंद्रीय बीज अनुसंधान संस्थान शिमला के साथ अनुबंध (एमओयू) हो गया है। इसके बाद अब एयरोपोनिक तकनीक के माध्यम से करनाल स्थित देश के सबसे बड़े आलू केंद्रों में शुमार प्रौद्योगिकी केंद्र में बिना जमीन और मिट्टी के हवा में आलू बीज का उत्पादन किया जा सकेगा। इससे आलू उत्पादन में करीब 10 गुना वृद्धि होगी और किसानों की आय 10 से 12 गुना अधिक बढ़ सकती है। ये आलू उत्पादन में क्रांतिकारी कदम है। हरियाणा सरकार ने भी एयरोपोनिक तकनीक परियोजना की अनुमति प्रदान कर दी है। जिससे यहां के वैज्ञानिकों ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
करनाल स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ बागवानी विभाग की देखरेख में तकनीकी खेती करने में सहयोग कर रहा है। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि एयरोपोनिक तकनीक का पेटेंट तो केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के पास है। हरियाणा सरकार ने रॉयल्टी फीस का भुगतान करके एयरोपोनिक तकनीक से आलू उत्पादन के लिए एमओयू साइन किया है। इस तकनीक में शुरुआत में लैब से आलू हार्डनिंग यूनिट तक पहुंचते हैं। इसके बाद पौधे की जड़ों को बावस्टीन में डुबोते हैं। इससे उसमें कोई भी फंगस नहीं लगता। इसके बाद बेड बनाकर उसमें कॉकपिट में इन पौधों को लगा दिया जाता है। इसके तकरीबन 10 से 15 दिन बाद इन पौधों को एयरोपोनिक यूनिट के अंदर लगा दिया जाता है। इसके उचित समय के बाद आलू की फसल तैयार हो जाती है। तकनीक महंगी है, इसलिए आम किसान को तो सीधे तौर पर बीज उत्पादन करने में दिक्कत रहेगी लेकिन वह व्यवसाय के लिए एयरोपोनिक यूनिट लगा सकते हैं।
करीब 12 गुना बढ़ेगी उत्पादन क्षमता
आलू का बीज उत्पादित करने के लिए आमतौर पर ग्रीन हाउस तकनीक का इस्तेमाल होता आ रहा है। इसमें एक पौधे से पांच छोटे आलू मिलते हैं, जिन्हें किसान खेत में रोपित करता है, इसके बाद बिना मिट्टी के कॉकपिट में आलू का बीज उत्पादन शुरू किया गया। इसमें पैदावार करीब दो गुना हो गई। इसके बाद एक कदम और आगे बढ़ते हुए एयरोपोनिक तकनीक से आलू उत्पादन किया जा रहा है। इसमें बिना मिट्टी, बिना जमीन के आलू पैदा होने लगे हैं। एक पौधा 40 से 60 छोटे आलू तक दे रहा है, जिन्हें खेत में बीज के तौर पर रोपित किया जा रहा है। इस तकनीक से करीब 10 से 12 गुना आलू की पैदावार बढ़ सकती है।
लटकती जड़ों से दिए जाते हैं न्यूट्रिएंट्स
आलू केंद्र करनाल के वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि एयरोपोनिक्स नाम से ही स्पष्ट है कि हवा में आलू को पैदा करने की तकनीक है। इससे जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं, वह मिट्टी के जरिए नहीं बल्कि लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं। आलू के बीजों का बेहतर उत्पादन होता है। ये बीज किसी भी वायरस व रोग से रहित होंगे।
इस तकनीक से तैयार बीज सीधे किसान खाने वाले आलू पैदा नहीं करेंगे, बल्कि पहले पांच साल तक बीज ही तैयार करेंगे, इसके बाद आम किसानों को खाने वाले आलू के लिए जाएंगे। क्योंकि इससे पहले बीज प्रमाणित कराने की प्रक्रिया को भी पूरा किया जाएगा। हरियाणा सीड सर्टिफाइड एजेंसी इसे प्रमाणित करने के बाद टैग देगी। इसके बाद ही आलू को आम किसानों के लिए रिलीज किया जा सकता है। आने वाले समय में इस तकनीक से अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की कमी पूरी की जा सकेगी। केंद्र में एक यूनिट में इस तकनीक से 20 हजार पौधे लगाने की क्षमता है, इससे आगे फिर करीब 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीज तैयार किए जा सकते हैं।
– डॉ. जितेंद्र वैज्ञानिक आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ करनाल
माई सिटी रिपोर्टर
करनाल। आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ (करनाल) का केंद्रीय बीज अनुसंधान संस्थान शिमला के साथ अनुबंध (एमओयू) हो गया है। इसके बाद अब एयरोपोनिक तकनीक के माध्यम से करनाल स्थित देश के सबसे बड़े आलू केंद्रों में शुमार प्रौद्योगिकी केंद्र में बिना जमीन और मिट्टी के हवा में आलू बीज का उत्पादन किया जा सकेगा। इससे आलू उत्पादन में करीब 10 गुना वृद्धि होगी और किसानों की आय 10 से 12 गुना अधिक बढ़ सकती है। ये आलू उत्पादन में क्रांतिकारी कदम है। हरियाणा सरकार ने भी एयरोपोनिक तकनीक परियोजना की अनुमति प्रदान कर दी है। जिससे यहां के वैज्ञानिकों ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
करनाल स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ बागवानी विभाग की देखरेख में तकनीकी खेती करने में सहयोग कर रहा है। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि एयरोपोनिक तकनीक का पेटेंट तो केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के पास है। हरियाणा सरकार ने रॉयल्टी फीस का भुगतान करके एयरोपोनिक तकनीक से आलू उत्पादन के लिए एमओयू साइन किया है। इस तकनीक में शुरुआत में लैब से आलू हार्डनिंग यूनिट तक पहुंचते हैं। इसके बाद पौधे की जड़ों को बावस्टीन में डुबोते हैं। इससे उसमें कोई भी फंगस नहीं लगता। इसके बाद बेड बनाकर उसमें कॉकपिट में इन पौधों को लगा दिया जाता है। इसके तकरीबन 10 से 15 दिन बाद इन पौधों को एयरोपोनिक यूनिट के अंदर लगा दिया जाता है। इसके उचित समय के बाद आलू की फसल तैयार हो जाती है। तकनीक महंगी है, इसलिए आम किसान को तो सीधे तौर पर बीज उत्पादन करने में दिक्कत रहेगी लेकिन वह व्यवसाय के लिए एयरोपोनिक यूनिट लगा सकते हैं।
करीब 12 गुना बढ़ेगी उत्पादन क्षमता
आलू का बीज उत्पादित करने के लिए आमतौर पर ग्रीन हाउस तकनीक का इस्तेमाल होता आ रहा है। इसमें एक पौधे से पांच छोटे आलू मिलते हैं, जिन्हें किसान खेत में रोपित करता है, इसके बाद बिना मिट्टी के कॉकपिट में आलू का बीज उत्पादन शुरू किया गया। इसमें पैदावार करीब दो गुना हो गई। इसके बाद एक कदम और आगे बढ़ते हुए एयरोपोनिक तकनीक से आलू उत्पादन किया जा रहा है। इसमें बिना मिट्टी, बिना जमीन के आलू पैदा होने लगे हैं। एक पौधा 40 से 60 छोटे आलू तक दे रहा है, जिन्हें खेत में बीज के तौर पर रोपित किया जा रहा है। इस तकनीक से करीब 10 से 12 गुना आलू की पैदावार बढ़ सकती है।
लटकती जड़ों से दिए जाते हैं न्यूट्रिएंट्स
आलू केंद्र करनाल के वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि एयरोपोनिक्स नाम से ही स्पष्ट है कि हवा में आलू को पैदा करने की तकनीक है। इससे जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं, वह मिट्टी के जरिए नहीं बल्कि लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं। आलू के बीजों का बेहतर उत्पादन होता है। ये बीज किसी भी वायरस व रोग से रहित होंगे।
इस तकनीक से तैयार बीज सीधे किसान खाने वाले आलू पैदा नहीं करेंगे, बल्कि पहले पांच साल तक बीज ही तैयार करेंगे, इसके बाद आम किसानों को खाने वाले आलू के लिए जाएंगे। क्योंकि इससे पहले बीज प्रमाणित कराने की प्रक्रिया को भी पूरा किया जाएगा। हरियाणा सीड सर्टिफाइड एजेंसी इसे प्रमाणित करने के बाद टैग देगी। इसके बाद ही आलू को आम किसानों के लिए रिलीज किया जा सकता है। आने वाले समय में इस तकनीक से अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की कमी पूरी की जा सकेगी। केंद्र में एक यूनिट में इस तकनीक से 20 हजार पौधे लगाने की क्षमता है, इससे आगे फिर करीब 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीज तैयार किए जा सकते हैं।
– डॉ. जितेंद्र वैज्ञानिक आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ करनाल
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