बादशाह का खात्मा का मंचन
– फोटो : Twitter/Sahitya Kala Parishad Delhi
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एक अच्छे नाटक का मंचन न केवल मन मोह लेता है, बल्कि अपने पीछे एक बड़ा संदेश भी छोड़ जाता है। निर्देशिका और अपने नाटक में ममता कर्नाटक के साथ मुख्य किरदार निभाने वाली मनीषा मल्होत्रा का नाटक ‘…और कितना सहना है’ भी कुछ ऐसा ही है। साहित्य कला परिषद ने तीन नाटकों का चयन किया। जिनमें स्त्री विमर्श पर केन्द्रित ‘….और कितना सहना है’ ने दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी। दूसरे नाटक ‘बादशाह का खत्मा’ ने अपने साथ दर्शकों को बांधे रखा।
‘बादशाह का खात्मा’ मुफलिसी में जीने वाले एक ऐसे लेखक की कहानी है जो फोनो प्रेम का शिकार हो जाता है। अपने प्रेमिका से बेइंतहा लगाव रखने लगता है। दोनों का लगाव फोन की घंटी के साथ फोन की घंटी पर ही खत्म होता है। दोनों कभी नहीं मिलते और अंत में जब मिलने की बारी आती है तो उसकी सुध-बुध में प्रेम का यह बादशाह दवा लेना भूल जाता है। अगले फोन के आने के इंतजार में तड़पकर जान दे देता है।
प्रेमिका भी उसे फ्लर्ट नहीं करती, लेकिन जबतक उसके फोन की घंटी बजती है, तबतक उसका फोनो प्रेमी इस दुनिया को अलविदा कह चुका होता है। अमरनाथ साह का लिखा यह नाटक श्रीराम सेंटर ऑडिटोरियम में मौजूद सभी दर्शकों को अपने साथ बंधे रखने में सफल रहा।
…..और कितना सहना है?
मनीषा मल्होत्रा इस नाटक में यह सवाल छोड़ जाती हैं। इस नाटक में ‘सटायर’ की भरमार है। ममता कर्नाटक और मनीषा मल्होत्रा दो अभिनेत्रियां मंच पर पम्मी और नयना के किरदार में आती हैं। इनके संवाद और कसे हुए अभिनय ने यह अहम सवाल छोड़ा कि क्या स्त्री सिर्फ एक देह है? या फिर इस जिस्म में कुछ भावनाएं, कुछ कोंपले और कुछ जज्बात भी पलते हैं? स्त्री विमर्श, रुढिवादी परंपरा, आधुनिक जीवन शैली और पितृ सत्तात्मक समाज पर इस नाटक ने अपने गहरे संदेशों के माध्यम से छाप छोड़ने की कोशिश की है।
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