लेखिका अल्पना डे, महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर की प्रधानाचार्य हैं
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। अपने आसपास के परिवेश, स्थितियों एवं संवेदनाओं को जीता हुआ वह समाज की उन्नति में विभिन्न तरह से अपना योगदान देता है। तार्किक शक्ति के बल पर सत्य-असत्य, उचित-अनुचित और सूक्ष्म- स्थूल का अंतर स्पष्ट कर पाता है। उसकी इसी चेतना का परिणाम है- संचार माध्यम। इसकी मदद से हमारी जीवन शैली बदलती है।
सोशल मीडिया है भानुमती का पिटारा
दूसरे शब्दों में कहें तो यह भानुमती का ऐसा पिटारा है, जहां मनोरूप चीजें प्राप्त हो जाती हैं। खासकर युवाओं को यह तीव्रता से आकर्षित करता है। यह ज्ञान का ऐसा स्रोत है जहां हमें किसी भी विषय से संबंधित जानकारियां कुछ ही पल में प्राप्त हो जाती हैं।
संचार माध्यमों के अलग अलग स्वरूपों में इंटरनेट मीडिया एक है। वर्तमान में इसके दुष्प्रभाव भी परिलक्षित होने लगे हैं। इसलिए इनफ्लूएंसर्स की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। हमें इस बात को समझना होगा कि कौने से इनफ्लूएंसर्स हमारे हित में हैं और कौन भ्रमित करने। यह हमारे ही बीच से होते हैं। अपनी योग्यता के कारण इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि हम उनके अनुयायी बन जाते हैं।
उनकी कही हर बात का अनुसरण करने लगते हैं। ऐसे लोग हमारी पसंद, नापसंद, रुचियों एवं कमियों को बहुत अच्छी तरह पहचानते हैं। अलग-अलग विषयों पर इस तरह विचार रखते हैं कि हम उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। कई बार बिना सोचे समझे उनसे अपनी तुलना करने लगते हैं, अंधानुकरण ही अभीष्ट बन जाता है और इनफ्लूएंसर्सनिजी स्वार्थ के वशीभूत होकर हमारे मनोभावों का भरपूर लाभ उठाते हैं।
हम उनकी बात को निर्विरोध स्वीकार करते चले जाते हैं। चाहे वह हमें किसी उत्पाद के विषय में बता रहे हों अथवा अपने व्यक्तिगत विचारों से अवगत करा रहे हों। ऐसे इनफ्लूएंसर्सधर्म, जाति, संप्रदाय के संबंध में आलोचनात्मक या स्वीकारात्मक टिप्पणियों का चक्रव्यूह बनाकर हमें उलझाते हैं। स्वीकृति और अस्वीकृति पर हमसे हमारी राय मांगते हैं और हम अपनी राय देने लगते हैं। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे माध्यम पर यह बहुतायत में होता है।
इनफ्लूएंसर्स हमारी सोच व रूचि के अनुसार कार्य करते हैं। कभी-कभी हम दिखावे के लिए अथवा फिर अपनी ही भावनाओं, व्यक्तिगत आक्षेपों, तनाव, भय एवं जीवन की समस्याओं से उबरने के लिए ऐसी चीजों को बार-बार देखते हैं और इनफ्लूएंसर्स की कही बातों को एकमात्र समाधान/सहारा मान लेते हैं। हम जाने अनजाने उन पर निर्भर होते चले जाते हैं । हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी उनके अधीन हो जाती है। परिणामतः सही एवं गलत के बीच के अंतर को हम भूल जाते हैं।
हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा? यह समझने की शक्ति हम खो देते हैं। यह स्थिति अत्यंत भयावह होती है। समाज में असंतुलन जन्म लेता है। धर्म, संप्रदाय एवं व्यक्तिगत आक्षेपों से वैमनस्य एवं वैचारिक मतभेद उत्पन्न हो रहे हैं। इसकी वजह से ही आज दुनिया में ध्रुवीकरण, आतंकवाद एवं हिंसक विचारधारा पनप रही है। जाने अनजाने अजीब सी बौद्धिक पराधीनता को हम स्वीकृति देते चले जा रहे हैं। इसे यदि समय रहते नहीं रोका गया तो परिणाम भयानक होगा।
कैसे करें लोकप्रिय इनफ्लूएंसर्स का सही चुनाव
हम सोशल मीडिया पर लोकप्रिय इनफ्लूएंसर्स का सही चुनाव कैसे करें? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि ऐसी विकट परिस्थिति में हमें स्वविवेक का परिचय देना होगा। सबसे पहले यह समझना होगा कि इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय इन प्रभावशाली इनफ्लूएंसर्स का समाज की उन्नति में क्या योगदान है ? क्या उनके विचारों एवं चिंतन में देश अथवा समाज का हित निहित है? यदि हां तो वह उपयोगी हैं अन्यथा उन्हें अस्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है।
हम इंटरनेट मीडिया के साक्षी बनें, भोगी नहीं। सरल उपाय यह है कि जो भी देखें, उसे अपने आचरण एवं जीवन में अपनाकर देखने अथवा चिंतन करने का प्रयत्न करें कि क्या यह चीजें, विचार हमारे लिए उपयोगी हैं भी या नहीं! हमें कृत्रिमता के आवरण से बाहर आना होगा और मौलिकता को प्रश्रय देना होगा। आत्मचिंतन एवं आत्म विश्लेषण ही समस्याओं का एकमात्र हल है।
Edited By: Ankur Tripathi
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