प्रयागराज, जेएनएन। हमारे देश में संयुक्त परिवार की अवधारणा रही है। हम सब की मोबाइल की लत ने इसे काफी प्रभावित किया है। लोग साथ बैठकर भी एक दूसरे से न तो संवाद करते हैं और न उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ पाते हैं। यही वजह है कि सही या गलत बातों के लिए रोक टोक की आदत भी समाप्त हो रही है। हर कोई अपने तक सिमट कर रह गया है। यह बात दैनिक जागरण की ओर से किड्स एकेडमी में आयोजित संस्कारशाला के तहत कहानी वाचन के दौरान बच्चों व शिक्षकों ने कही।
इंटरनेट मीडिया के प्रचलन ने बहुत से बदलाव स्थापित किए
विद्यार्थियों ने कहा, इंटरनेट मीडिया के प्रचलन ने बहुत से बदलाव स्थापित किए। इससे समाज का मूल चिंतन भी बदला। अब लोग अपने तक सिमट कर रह गए हैं। एक समय था बड़े बच्चों को किसी भी गलत काम के लिए तुरंत टोक देते थे। ऐसा नहीं कि सिर्फ परिवार के बच्चों को टोकते थे। वे गांव, मोहल्ले किसी को भी गलत बात के लिए तुरंत रोकते थे। यही वजह थी कि तब लोग एक दूसरे की नजर भी बचते थे या गलत चीजों पर अंकुश भी लगता था। इस प्रवृत्ति का समाप्त होना नुकसानदेय साबित हो रहा है। बच्चे निरंकुश हो रहे हैं। वे किसी के भी सामने कुछ भी कर रहे हैं। इन आदतों में बदलाव जरूरी है। यह तभी संभव होगा जब हम सब स्क्रीन की दुनिया से निकलकर एक दूसरे से जुड़ेंगे। इसके लिए समाज में वातावरण बनाने की जरूरत है।
इन्होंने यह कहा
बच्चों का पालन पोषण बाबा आजी और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा किए जाने से उनमें पारिवारिक मूल्यों के साथ सामाजिक मूल्यों का भी स्थानांतरण होता है। वर्तमान दौर एकल परिवार का है। इससे बच्चे पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का ज्ञान नहीं पाते। मोबाइल के बढ़ते प्रयोग ने हम सब को अपनो से दूर किया है। इस दिशा में बदलाव जरूरी है।
मनीषा अरोरा, प्रधानाचार्य किड्स एकेडमी
मोबाइल की लत बड़ों के साथ ही बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। इसका दुष्प्रभाव यह कि सभी के स्वभाव में भीबदलाव आने लगा है। शारीरिक मानसिक परेशानियां भी उनमें देखी जा रही है। कम आयु के विद्यार्थियों की बात करें तो इंटरनेट मीडिया पर अधिक समय बिताने की वजह से अच्छे बुरे का भी फर्क नहीं कर पा रहे हैं। समस्या से निपटने के लिए शिक्षकों को प्रयास करना होगा।
– विशाला श्रीवास्तवा, अकादमिक हेड
Edited By: Ankur Tripathi
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