टीम जागरण, देहरादून : Sanskarshala 2022 : इंटरनेट मीडिया का जन्म संवाद स्थापित करने और मनोरंजन के लिए हुआ था। यह एक ऐसा मीडिया है, जो बाकी सारे मीडिया से अलग है। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है, जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति किसी प्लेटफार्म (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) आदि का उपयोग कर पहुंच बना सकता है।
अपने तमाम उपयोगों के बीच इंटरनेट मीडिया से उत्पन्न डिप्रेशन एक तेजी से उभरती चिंता है। इसके कई अन्य कारणों के बीच एक बड़ा कारण है, फेसबुक या इंस्टाग्राम पर दूसरों के जीवन के लुभावने क्षण देख कर अपने जीवन से तुलना करना। यह सामाजिक तुलना स्वयं और दूसरों के बारे में नकारात्मक भावनाओं को बढ़ा सकती है और इंटरनेट मीडिया के बढ़ते उपयोग के साथ अवसाद का जोखिम बढ़ता जाता है।
इंटरनेट मीडिया पर लोग की सफलता की लुभावनी गाथा को देखकर कई लोग में हीनभावना पनपने लगती है कि दूसरों का जीवन कितना सुखद है, वे कितने खुश रहते हैं। इसके सामने उन्हें अपने जीवन के संघर्ष और परेशानियां और बड़े लगने लगते हैं। युवाओं में फियर आफ मिसिंग आउट तेजी से पनप रहा है।
इंटरनेट मीडिया को बाडी इमेज की चिंताओं से भी जोड़ा गया है। अनुसंधान इंगित करता है कि जब युवा लड़कियां थोड़े समय के लिए फेसबुक देखती हैं, तो गैर- उपयोगकर्ताओं की तुलना में शरीर की छवि की चिंता अधिक होती है। युवा लोग आदर्श छवियों को देखते हैं और अपने शरीर के साथ तुलना करना शुरू करते हैं। इसका परिणाम आत्मविश्वास की कमी और हीन भावना हो सकता है।
युवा लोग मशहूर हस्तियों से बहुत अधिक प्रभावित होते हैं और उनके जैसा दिखने की इच्छा रख सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि यह अप्राप्य है तो इसका परिणाम अवसाद भी हो सकता है। बाडी इमेज का मसला सिर्फ महिलाओं का मसला नहीं है। युवा पुरुष भी मांसपेशियों, अच्छी तरह से टांड शरीर से और प्रभावित होते हैं जो वे आनलाइन देखते हैं।
तस्वीरों पर अपनी उपस्थिति को संपादित करने के लिए लोग के लिए डिजिटल संपादन साफ्टवेयर का उपयोग करने का अवसर भी युवा लोग में सुंदरता की झूठी भावना विकसित कर सकता है। यह चिंताजनक है कि कास्मेटिक सर्जरी प्राप्त करने के इच्छुक युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है और हाल के वर्षों में सेल्फी की लोकप्रियता के परिणामस्वरूप उन छवियों में वृद्धि हुई है जो सुंदरता और पूर्णता को दर्शाती हैं।
इन छवियों का शरीर सम्मान और शरीर विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इंटरनेट मीडिया के दिखावे की अंधी दौड़ में साथियों से पीछे ना रह जाने का डर युवा पीढ़ी को हर दायरा तोड़ कर कैसे भी करके इस दिखावे की प्रतियोगिता में भागते रहने को प्रोत्साहित करता है। यूजर ये भूल जाता है कि सोशल मीडिया पर हम सब अपना सबसे अच्छा संस्करण दिखाना चाहते हैं।
यूजर ये भूल जाता है कि वर्चुअल और रियल लाइफ अलग अलग होती है। जरूरी नहीं कि जो दिखे वो सच भी हो। फेसबुक और इंस्टाग्राम की जगमगाती स्टोरी के बीच असल जिंदगी की छोटी छोटी खुशियां और उपलब्धियां जब नगण्य लगने लगें तब समझ लेना चाहिए कि हम इस मायावी दुनिया के चक्रव्यूह में फंस चुके हैं, जिससे जल्दी न निकला जाए तो ये सिर्फ अवसाद के अंधे कुए की ओर ले जाएगा।
– डा दीपशिखा श्रीवास्तव, प्रोफेसर पेट्रीशियन कालेज फार वुमेन
युवा समझें जिम्मेदारी, बुजुर्गों को भी करें जागरूक
सूचना क्रांति के इस दौर में डिजिटल मीडिया किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन बीते कुछ सालों में डिजिटल संसाधनों की उपयोगिता में बढ़ोतरी के कारण, इसके दुष्प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता। जिसका शिकार अधिकांश बुजुर्ग लोग हैं। सरकारी आंकड़ों पर गौर किया जाए तो उसके मुताबिक साइबर अपराध के ज्यादातर पीड़ित बड़ी आयु वाले लोग हैं। जिनमें हैकिंग, आनलाइन ठगी, फिशिंग, स्पैम ईमेल, रैनसमवेयर, आनलाइन ब्लैकमेल एवं अन्य साइबर अपराध शामिल हैं।
युवाओं की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने परिवार के बुजुर्गों को इंटरनेट के सही इस्तेमाल की जानकारी उपलब्ध कराएं। साथ ही साथ आनलाइन शापिंग, यूपीआइ एप्लीकेशन, इंटरनेट मीडिया से संबंधित तौर तरीकों से जागरूक कराएं, ताकि वो खुद को इस तकनीकी दौर में ख़ुद को पिछड़ा ना महसूस करें एवं किसी प्रकार के साइबर अपराध का शिकार ना बने।
भारत में 12-29 आयु वर्ग के युवा, कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का 65 प्रतिशत हिस्सेदारी लिए हुए है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर युवा पीढ़ी का दारोमदार कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। युवा पीढ़ी एवं बुजुर्गों के बीच तकनीकी सूचनाओं का आदान-प्रदान आज के समय की मांग है, जोकि एक सामाजिक सामंजस्य को एक नया रूप प्रदान करेगा।
– ललित कुमार, विभागाध्यक्ष, मास कम्युनिकेशन
दून बिजनेस स्कूल
Edited By: Nirmala Bohra
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