Updated Fri, 06th Jan 2023 08:27 PM IST
उच्चतम न्यायालय ने यौन अपराधों के पीड़ितों को मुआवजे से जुड़ी याचिका पर केंद्र और चार राज्यों के विधिक सेवा प्राधिकरणों से शुक्रवार को जवाब मांगा। न्यायालय ने एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की उस याचिका पर केन्द्र और चार राज्यों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों से जवाब मांगा जिसमें उसके उस आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है कि यौन अपराधों के पीड़ितों को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की 2018 की मुआवजा योजना के अनुसार मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए, जो दंड प्रक्रिया संहिता के तहत भी अनिवार्य है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने एनजीओ ‘सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार’ की याचिका पर केंद्र और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को नोटिस जारी किया। एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता ज्योतिका कालरा ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पीड़ितों के साथ काम करते हुए महसूस किया कि उन्हें न्याय, मुआवजा और सहायता नहीं मिल पा रही है और पीड़ितों/परिवारों को सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित होना पड़ सकता है।
कालरा ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 2018 के एक फैसले में कहा था कि सभी राज्यों को मुआवजे संबंधी नालसा की योजना का पालन करना होगा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली जैसे राज्य शीर्ष अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अलग-अलग मुआवजे का भुगतान कर रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि फिलहाल अदालत केंद्र और चार राज्यों को नोटिस जारी करेगा और बाद में जरूरत पड़ने पर याचिकाओं का दायरा बढ़ाया जा सकता है।
एनजीओ ने कहा, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बलात्कार से संबंधित अपराध दर पिछले दो दशकों में 70.7 प्रतिशत बढ़कर 2001 में प्रति 100,000 महिलाओं और लड़कियों पर 11.6 से बढ़कर 2018 में 19.8 हो गई। याचिका में कहा गया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक 2006 के उद्देश्य और कारणों में यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि ‘‘महिलाओं, विशेष रूप से यौन अपराध की शिकार महिलाओं को राहत प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है।’’
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