उच्च हिमालयी क्षेत्र के बुग्यालों से तराई को जाती भेड़ें। संवाद
– फोटो : PITHORAGARH
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धारचूला (पिथौरागढ़)। दारमा और व्यास घाटी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण ठंड काफी बढ़ गई है। इस कारण दारमा के 14 और व्यास घाटी के सात गांव के लोगों के साथ बुग्याल गए भेड़ पालक भी पालतू पशुओं के साथ घाटियों की ओर लौटने लगे हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के बाद दिक्कतें बढ़ने लगी हैं। ठंड के कारण हिमाचल प्रदेश और धारचूला तहसील के स्थानीय भेड़पालक छह महीने के लिए घाटियों की ओर आने लगे हैं। गर्मी में भेड़-बकरी पालक दारमा घाटी के पंचाचूली, दावे, विदांग और व्यास घाटी के ज्योलिंकांग बुग्याल में 10 से 14 हजार की ऊंचाई वाले बुग्यालों में चले जाते हैं। इस बार जल्दी हिमपात होने से भेड़पालकों ने नीचे की ओर लौटना शुरू कर दिया है।
बृहस्पतिवार को हिमाचल निवासी भेड़पालक पंजाब सिंह ने बताया कि वह 45 सालों से भेड़ों के साथ छह माह दारमा घाटी और छह माह टनकपुर के जंगलों में रहते हैं। दारमा से लगभग एक माह में अपने भेड़ों के साथ पैदल चलकर टनकपुर पहुंचेंगे। दांतू के भेड़पालक नैन सिंह दताल ने बताया कि वह 40 सालों से भेड़पालन का कार्य कर परिवार पाल रहे हैं।
सरकार को भेड़पालकों की समस्या पर ध्यान देना चाहिए
धारचूला (पिथौरागढ़)। भेड़ पालकों का कहना है कि भेड़पालन में अधिक मेहनत और आमदनी कम के कारण बहुत से भेड़पालक हर साल अपनी भेड़ और बकरियां बेच रहे हैं। शासन-प्रशासन के भेड़पालक की समस्याओं पर ध्यान नहीं देने से भी लोग अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ रहे हैं। सोबला निवासी आन सिंह रोकाया ने कहा कि सरकार को सीमांत के भेड़पालकों के विकास के लिए भेड़, बकरियों, पशुओं का पंजीकरण करना चाहिए। शिविर लगाकर वैज्ञानिक तरीकों से भेड़पालन की विधि की जानकारी देनी चाहिए। समय से पशुओं का पंजीकरण नहीं होने से बर्फबारी और किसी प्रकार की आपदा होने पर पशु पालकों को समय से मुआवजा नहीं मिलता है। उन्हें मुआवजे के लिए कार्यालयों के कई माह तक चक्कर लगाने पड़ते हैं। संवाद
धारचूला (पिथौरागढ़)। दारमा और व्यास घाटी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण ठंड काफी बढ़ गई है। इस कारण दारमा के 14 और व्यास घाटी के सात गांव के लोगों के साथ बुग्याल गए भेड़ पालक भी पालतू पशुओं के साथ घाटियों की ओर लौटने लगे हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के बाद दिक्कतें बढ़ने लगी हैं। ठंड के कारण हिमाचल प्रदेश और धारचूला तहसील के स्थानीय भेड़पालक छह महीने के लिए घाटियों की ओर आने लगे हैं। गर्मी में भेड़-बकरी पालक दारमा घाटी के पंचाचूली, दावे, विदांग और व्यास घाटी के ज्योलिंकांग बुग्याल में 10 से 14 हजार की ऊंचाई वाले बुग्यालों में चले जाते हैं। इस बार जल्दी हिमपात होने से भेड़पालकों ने नीचे की ओर लौटना शुरू कर दिया है।
बृहस्पतिवार को हिमाचल निवासी भेड़पालक पंजाब सिंह ने बताया कि वह 45 सालों से भेड़ों के साथ छह माह दारमा घाटी और छह माह टनकपुर के जंगलों में रहते हैं। दारमा से लगभग एक माह में अपने भेड़ों के साथ पैदल चलकर टनकपुर पहुंचेंगे। दांतू के भेड़पालक नैन सिंह दताल ने बताया कि वह 40 सालों से भेड़पालन का कार्य कर परिवार पाल रहे हैं।
सरकार को भेड़पालकों की समस्या पर ध्यान देना चाहिए
धारचूला (पिथौरागढ़)। भेड़ पालकों का कहना है कि भेड़पालन में अधिक मेहनत और आमदनी कम के कारण बहुत से भेड़पालक हर साल अपनी भेड़ और बकरियां बेच रहे हैं। शासन-प्रशासन के भेड़पालक की समस्याओं पर ध्यान नहीं देने से भी लोग अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ रहे हैं। सोबला निवासी आन सिंह रोकाया ने कहा कि सरकार को सीमांत के भेड़पालकों के विकास के लिए भेड़, बकरियों, पशुओं का पंजीकरण करना चाहिए। शिविर लगाकर वैज्ञानिक तरीकों से भेड़पालन की विधि की जानकारी देनी चाहिए। समय से पशुओं का पंजीकरण नहीं होने से बर्फबारी और किसी प्रकार की आपदा होने पर पशु पालकों को समय से मुआवजा नहीं मिलता है। उन्हें मुआवजे के लिए कार्यालयों के कई माह तक चक्कर लगाने पड़ते हैं। संवाद
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