Center on SIMI: केंद्र सरकार ने सिमी संगठन को लेकर बयान जारी किया है, केंद्र ने कहा कि सिमी देश के लिए खतरनाक संगठन है, जिसका उद्देश्य भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना है। ये संगठन राष्ट्रवाद के खिलाफ है। साल 2019 में प्रतिबंधित आदेश को चुनौती देने वाली सिमी के एक पूर्व सदस्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर केंद्र सरकार की ओर से जवाब दिया गया है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर अपने लगातार आठवें प्रतिबंध को एक ‘गैरकानूनी संघ’ के रूप में उचित ठहराया है, जिसमें कहा गया है, ‘प्रतिबंधित संगठन के कार्यकर्ता अभी भी गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल हैं जो संप्रभुता को खतरा पैदा करने में सक्षम हैं। केंद्र ने साफ तौर पर ये स्पष्ट कर दिया है कि, भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के सिमी के उद्देश्य को टिकने नहीं दिया जा सकता।
विशेष रूप से, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली एक एससी बेंच सिमी पर लगाए गए प्रतिबंध पर दलीलों के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जिसमें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गठित एक न्यायाधिकरण के 2019 के प्रतिबंध आदेश को चुनौती दी गई थी। जवाब में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक जवाबी हलफनामा दायर करते हुए कहा, ‘संगठन के कार्यकर्ता दूसरे देशों में स्थित अपने सहयोगियों और आकाओं के साथ “नियमित संपर्क” में हैं और उनकी हरकतें भारत में शांति और सांप्रदायिक माहौल को बाधित कर सकती हैं’।
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केंद्र सरकार ने बताया सिमी का उद्धेश्य
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में कहा,’ सिमी का उद्देश्य इस्लाम के प्रचार में छात्रों/युवाओं को लामबंद करना और जिहाद के लिए समर्थन प्राप्त करना है’। संगठन ‘इस्लामी इंकलाब’ के माध्यम से” शरीयत “आधारित इस्लामी शासन के गठन पर भी जोर देता है। संगठन एक राष्ट्र-राज्य में विश्वास नहीं करता है। यह मूर्ति पूजा को एक पाप के रूप में मानता है और इस तरह की प्रथाओं को समाप्त करने के अपने ‘कर्तव्य’ का प्रचार करता है। केंद्र सरकार की ओर से सरकारी वकील रजत नायर सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। अदालत ने हलफनामे में लिखी गई बातों का संज्ञान लिया और याचिकाकर्ता को अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में कहा
अपने हलफनामे में, केंद्र ने कहा, “27 सितंबर, 2001 से प्रतिबंधित होने के बावजूद, सिमी कार्यकर्ताओं के बीच बैठक का दौर जारी है और ये लोग साजिश कर रहे हैं जिसे अंजाम देने के लिए हथियार और गोला-बारूद इकट्ठा कर रहे हैं”। संगठन के कार्यकर्ता “ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं जो चरित्र में विघटनकारी हैं और भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने में सक्षम हैं”।
केंद्र ने खासतौर पर कहा, ‘सिमी कार्यकर्ता अन्य देशों में स्थित सिमी के सहयोगियों के नियमित संपर्क में हैं और उनकी हरकतें देश में शांति और सांप्रदायिक माहौल को बाधित कर सकती है’।
केंद्र ने कहा हमे ये नहीं भुलना चाहिए कि, “हिज्ब-उल-मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन अपने देश-विरोधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सिमी कैडरों में घुसने में कामयाब रहे हैं।” केंद्र ने अनुरोध किया कि सर्वोच्च न्यायालय सिमी को “गैरकानूनी संघ” घोषित करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दे।
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सिमी के वकील ने मांगा समय
केंद्र सरकार के हलफनामे का जवाब देने के लिए अब सिमी के वकील ने हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है.
क्या है SIMI?
कट्टरपंथी छात्रों के संगठन सिमी का गठन 1977 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। इसके संस्थापक प्रेसिडेंट मोहम्मद अहमदुल्ला सिद्दिकी यूएस की वेस्टर्न इलिनोइस यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म और पब्लिक रिलेशंस के प्रोफेसर रहे हैं, हालांकि सिद्दिकी का कहना है,’उनका सिमी से अब कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि संगठन पर अब रेडिकल लोगों का कब्जा हो गया है’।
सिमी का मकसद भारत में हावी हो रही पश्चिमी संस्कृति को खत्म कर इसे एक इस्लामिक राष्ट्र बनाना है। अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद सिमी पर 2001 में पोटा के तहत पाबंदी लगा दी गई थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 31 जनवरी, 2019 की अपनी अधिसूचना में सिमी पर लगे प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया था।
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