सुप्रीम कोर्ट।
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि एक पुरुष को अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए शारीरिक श्रम करके भी पैसा कमाना पड़ता है क्योंकि महिला और नाबालिग बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान करना उसका कर्तव्य है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि पति को शारीरिक श्रम से भी पैसा कमाने की आवश्यकता होती है, अगर वह शारीरिक रूप से सक्षम है और वह विधान में वर्णित कानूनी रूप से अनुमेय आधारों को छोड़कर अपने दायित्व से बच नहीं सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 सामाजिक न्याय का एक उपाय है और विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है।
पीठ ने फरीदाबाद के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखने के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक महिला की याचिका को स्वीकार कर लिया। पीठ ने पति की ओर से पेश वकील दुष्यंत पाराशर के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उसका छोटा व्यवसाय है, जो बंद हो गया है। इसलिए उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।
शीर्ष अदालत ने व्यक्ति को बेटे को 6,000 रुपये देने के अतिरिक्त पत्नी को 10,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। वकील पाराशर ने पत्नी के चरित्र पर सवाल उठाया था। उन्होंने दावा किया कि लड़का (बेटा) उसका जैविक पुत्र नहीं है। फैमिली कोर्ट ने हालांकि डीएनए परीक्षण के लिए उसकी याचिका खारिज कर दी।
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