–अंग्रेजी व बांग्ला भाषा की बीस पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद
–तीन दिवसीय अनुवाद कार्यशाला का समापन
प्रयागराज, 31 जनवरी (हि.स.)। अनुवाद दो नदियों के बीच सेतु का काम करता है। एक अनुवादक दो भाषाओं को साथ लेकर अपने विचारों को प्रवाहित करता है। आज अनुवाद ने कला ही नहीं बल्कि विज्ञान के क्षेत्र में भी परचम लहराया है। अनुवाद हमें विश्व नागरिकता की सम्भावना तलाशने का अवसर देता है।
यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डीन रिसर्च प्रो. आई.के रिजवी ने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सहयोग से गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान तथा राजभाषा अनुभाग के तत्वावधान में आयोजित अनुवाद कार्यशाला के समापन सत्र में कही।
प्रोफेसर रिजवी राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान व राजभाषा अनुभाग द्वारा आयोजित अनुवाद कार्यशाला के समापन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। तीन दिवसीय इस कार्यशाला में अंग्रेजी व बांग्ला भाषा की बीस पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया गया।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली के सम्पादक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि भाषाएं हम सभी को जोड़ती हैं और अनुवाद इस जोड़ने की प्रक्रिया का खूबसूरत पुल होता है। हम सभी के लिए यह चुनौती है कि हम पीछे आ रही पीढ़ियों को शब्दों और उनसे जुड़ी हुई संस्कृतियों से परिचित कराएं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास अपनी पुस्तकों के माध्यम से अकेले पिछले वर्ष दस करोड़ बच्चों तक पहुंचा है। उन्होंने कहा कि यह पहला अवसर है जब किसी हिन्दी भाषी क्षेत्र में बांग्ला भाषा की पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद हो रहा है।
इसके पूर्व कार्यशाला के संयोजक व गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने कहा कि तीन दिनों में अंग्रेजी और बांग्ला भाषा की बीस पुस्तकों का अनुवाद और उनका सम्पादन होना सुखद है। उन्होंने बताया कि पूर्व की भांति ही ये पुस्तकें भी राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित कर दी जायेंगी और शीघ्र ही हमारे हाथों में होंगी।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने कहा प्रयागराज अपने आप में ज्ञान का भंडार है। तीन दिन में हमने यहां 20 पुस्तकों का अनुवाद किया जो अंग्रेजी से हिंदी और बांग्ला से हिंदी हैं। जल्दी ही विश्व पुस्तक मेले में आपको यह किताबें देखने को मिल जाएंगी। बड़ा सुखद है कि हम गांधी संस्थान में अनुवाद जैसे जटिल कार्य को कर रहे थे। संस्थान के प्राकृतिक वातावरण ने अनुवाद को सहज बनाया है।
इविवि की मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी डॉ जया कपूर ने बताया कि तीन दिवसीय अनुवाद कार्यशाला के समापन सत्र में सभी को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। कार्यशाला में इविवि के पन्द्रह शिक्षक व शोधार्थियों ने भाग लिया। इनमें प्रमुख रूप से डॉ जनार्दन, डॉ दीनानाथ मौर्य, डॉ शैलेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ अंगीरा सेन शर्मा, प्रवीण शेखर, डॉ मृत्युंजय राव, डॉ धीरेन्द्र प्रताप सिंह, सचिन मेहरोत्रा, पापिया हालदार, मन्दिरा बोस, प्रतिभा सिंह, प्रियंका शुक्ला, अभिनव चटर्जी शामिल रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त
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