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- According To The New Era, Revolutionary Experiments Are Being Done In Agriculture, If You Get The Right Direction, You Can Get Maximum Profit From Agriculture.
डॉ. महेंद्र मधुप26 मिनट पहले
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- नए ज़माने में जब नवाचार की राहें खुली हैं और हर क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रयोग हो रहे हैं, कृषि सरीखा बुनियादी क्षेत्र बदलाव से अछूता क्यों रहे? ‘खेती कभी फ़ायदे का काम नहीं रहा’ जैसे जुमले को पीछे छोड़कर यदि किसान योजनाबद्ध ढंग से काम करें, तो कृषि से अधिक लाभ और संतुष्टि देने वाला कार्य दूसरा न होगा।
स्वतंत्र भारत में सभी सरकारों की सदिच्छा के बावजूद लघु और सीमांत किसानों की ख़ुशहाली ‘शक्ल’ नहीं ले सकी। खेती पर निर्भर बहुसंख्यक ग्रामीण परिवारों की आय इतनी भी नहीं, जितनी वे मनरेगा में कार्य करते तो होती। क़रीब आधी सदी से कृषि क्षेत्र से गहन जुड़ाव, कृषि पत्रकारिता और विदेश यात्राअों में खेती-किसानी के अध्ययन से समझ में आने लगा कि नींव में ही ‘खोट’ रह गई। विदेशों में कृषक संचालित कृषि उद्योग (कृषि उत्पादन, मूल्य संवर्धन और बिक्री) प्रभावी है, जबकि भारत में यह व्यवस्था कृषक समुदाय में नगण्य है। 2016 में इस मॉडल को किसान वैज्ञानिकों की जीवनशैली में उतारकर, देश-विदेश में उनकी पहचान के विस्तार की कोशिश ‘मिशन फार्मर साइंटिस्ट परिवार’ के ज़रिए की। जो मॉडल सोचा, वह खरा रहा।
किसानी का नया मॉडल
कृषि की पारम्परिक और आधुनिक कार्यपद्धति का समन्वय हो। प्रत्येक ग्राम पंचायत में कृषि मूल्यसंवर्धन के लिए वहां होने वाले उत्पादन के अनुरूप मशीनें लगाई जाएं और उनका दायित्व किसानों के पढ़े-लिखे बेटे-बेटियों को सौंंपा जाए। अनाज और सब्जि़यों का मूल्यसंवर्धन गांव में ही करके उसे पास के क़स्बों और शहरों में जाकर बेचेंगे। जिस कृषि उपज का भाव 30 रुपये है, उसे मूल्यसंवर्धन के बाद दुगने से अधिक बिक्री मूल्य पर बेचा जा सकता है। प्रचलित बाज़ार भाव से उनका बिक्री मूल्य बहुत कम होगा। किसानों की दुगनी से अधिक आय और उपभोक्ता के लिए शुद्ध खाद्य पदार्थ एक-तिहाई से आधे तक सस्ते। इन सबके लिए बिक्री के सीजन में क़र्ज़ की जगह निर्धारित समय के लिए बैंक लिमिट दी जाए। जो किसान निश्चित अवधि में प्रदत्त राशि लौटा दें, उनसे ब्याज नहीं लिया जाए।
खेत भी होंगे पर्यटन स्थल
शहरी लोग कृषि व्यवस्था को समझना चाहते हैं। विशेष रूप से बच्चे देख, सुन, समझ कर खेती की बुनियादी चीज़ों का अनुभव लेना चाहते हैं। दरअसल, ख़ुद फल-सब्जि़यां तोड़कर, घर ले जाकर पकाने का आनंद ही और है। पारम्परिक आवास स्थल खेत की परिधि में हों और वहां रहने का मौक़ा मिल जाए तो सोने पर सुहागा। अतिरिक्त आय का जुगाड़। प्रदूषणमुक्त जीने का अवसर। ब्रिटेन की तीन यात्राअों में मुझे कृषि पर्यटन को देखने और समझने का मौक़ा मिला। स्वागतकक्ष में प्रवेश शुल्क जमा करने के बाद वहां तोड़ी जाने वाली सब्जि़यों को एकत्रित करने के लिए प्लास्टिक कैरट दिए जाते हैं। मूल्य सूची भी टंगी रहती है। आप कृषि नवाचारों को समझिए, फल-सब्जि़यां तोड़कर कैरट में एकत्रित करिए, भरपूर तस्वीरें भी खींचिए। लौटते समय उन फल-सब्जि़यों के कुल बिक्री मूल्य में से प्रवेश के लिए अदा की गई राशि घटा दी जाती है। इन सबसे कृषि उत्पादन के बाद खेत पर ही मूल्यसंवर्धन और उपभोक्ता को सीधे बिक्री होती है, जो बिचौलियों से मुक्ति दिलाती है। देश में किसान वैज्ञानिकों और नवाचारी किसानों के बीच कृषि पर्यटन की इस चर्चा को आगे बढ़ाने की कोशिश निरंतर जारी है। इसके सुपरिणाम दस्तक देने लगे हैं। इसे लागू करने के लिए समन्वित प्रयासों की दरकार है।
अनुदान से पराश्रित हैं किसान
ऋण, क़र्जमाफ़ी, अनुदान, मुफ़्त सहायता आदि के मायाजाल से किसानों का ख़ास भला नहीं होता। तात्कालिक लाभ का मोह अन्नदाता को पराश्रित ही बनाता है। उसे निर्धनता के कारण क़र्ज़ का अन्यत्र उपयोग करना पड़ जाता है। घालमेल के कारण ‘लेन-देन’ और खेत पर अनुदानित संसाधनों के न लगने के क़िस्से भी सुनाई देते हैं। इसलिए किसानों को इन सबके प्रदूषण से बचाने के लिए प्रस्तावित कृषि मॉडल की नींव रखनी ही होगी। यदि किसान मॉडल अपना लेगा तो कभी ठगी का शिकार नहीं होगा।
ऑनलाइन भुगतान से सुरक्षा
सरकार ख़ुद के द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर किसानों से कृषि उपज ख़रीदती है। बाज़ार शक्तियों और उन पर नियंत्रण रखने वाले तंत्र के ‘दोस्ताने’ से किसान को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता। यदि किसानों से व्यापारियों और कम्पनियों द्वारा सरकार की तरफ़ से निर्धारित समर्थन मूल्य ( न्यूनतम समर्थन मूल्य ) से कम पर कृषि उपज ख़रीदने और आॅनलाइन भुगतान न करने को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया जाए तो किसान शोषण से बच सकेगा।
प्रारम्भ हो चुका है परिवर्तन
2016 में एक स्थिति ने और चौंंकाया कि दुनिया की किसी भाषा में किसान वैज्ञानिकों के जीवन, संघर्ष और शोध पर एक भी पुस्तक नहीं है। 2017 से इन पंक्तियों के लेखक ने जो चार पुस्तकें कृषि क्षेत्र को दीं, उन्हें पढ़कर किसान वैज्ञानिकों (खेतों के वैज्ञानिक) की देश-विदेश में व्यापक चर्चा हुई। इस बीच 2014 से भारत का राष्ट्रपति भवन किसान वैज्ञानिकों को मेहमान बनाने लगा। यही नहीं, स्वतंत्र भारत में पहली बार स्वतंत्रता सेनानियों और समाजसेवकों की तरह उन्हें पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया।
सीबीएसई 12वीं के बिज़नेस स्टडीज़ पार्ट-1 में, हरियाणा के किसान वैज्ञानिक धर्मबीर काम्बोज की कहानी पढ़ाई जाती है। उन्होंने 12वीं भी नहीं की। शुरुआती दिनों में दिल्ली में रिक्शा चलाकर पटरी पर सोते थे। उनकी बहुउद्देशीय खाद्य प्रसंस्करण मशीन पचासों खाद्य उत्पाद बनाती है। स्कूली शिक्षा भी पूर्ण न करने वाले किसान वैज्ञानिक पहचान के विस्तार से अब प्रतिमाह लाखों की आय अर्जित कर रहे हैं। इसी तरह, हरियाणा के किसान वैज्ञानिक ईश्वरसिंह कुंडू को जैविक कृषि नवाचारों के लिए 44 लाख रुपये की सहयोग राशि मिली। इनकी कहानियां पढ़ें और उनकी जीवनशैली में ख़ुद को ढालने के साथ ही लोगों को प्रेरित भी करें।
बेरोज़गारी से मिलेगी मुक्ति
जिन किसान वैज्ञानिकों के बच्चे गांव में ही कृषि उद्योग में जुट गए हैं, उनके घर-गांव की शक्ल ही बदल गई है। अब वे कहने लगे हैं कि कृषक संचालित कृषि उद्योग का मॉडल ज़मीनी रूप ले ले, तो पढ़े-लिखे ग्रामीण युवा शहरों-क़स्बों में नौकरी तलाशने की जगह शहरी युवाअों को रोज़गार देने में सक्षम हो जाएंग। गांवों में कुटीर उद्योग विकसित कर आय के अतिरिक्त संसाधन जुटा पाएंगे।
चौधरी चरण सिंह
राष्ट्रीय किसान दिवस
चौधरी चरणसिंह ने किसानों, पिछड़ों और ग़रीबों के लिए राजनीति की। वे कहते थे कि जाति प्रथा के रहते बराबरी, सम्पन्नता और राष्ट्र की सुरक्षा नहीं हो सकती। वे अल्पकाल के लिए 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक प्रधानमंत्री रहे। 2001 में उनके जन्मदिन 23 दिसम्बर से, प्रतिवर्ष किसान दिवस मनाने का फ़ैसला लिया गया।
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