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अयोध्या। हर वर्ष सर्दी के समय में बिकने वाली रजाइयों का कारोबार मंदी के दौर से गुजर रहा है। ठंड से निजात दिलाने के लिए ओढ़े जाने वाली रजाई पर पिछले कुछ वर्षों से गर्म कंबल हावी हो गए हैं। बाजार में रजाइयों की बिक्री काफी कम हो गई है और विभिन्न रंगों व वैराइटियों के कंबलों की बिक्री जोरों पर है।
महिलाओं की नजर में जहां रजाई ओढ़ने, संभालने व रखने में दिक्कतें आती है, वहीं कंबल हलके होने के साथ-साथ रखने आदि में आरामदायक रहता है। इससे महिलाएं अब घरों में रजाई रखने से परहेज करने लगी हैं। जिले में बुजुर्गों को छोड़कर अन्य लोग गर्म कंबल को ही प्राथमिकता दे रहे हैं।
कुछ वर्ष पहले पहले हर घरों में रुई की रजाइयों की भरपूर मांग रहती थी। सर्दी के मौसम से पहले ही लोग अपने घरों में रजाइयों को संभालना शुरू कर देते थे। घर के सदस्य ही नहीं आने वाले रिश्तेदारों तक का हिसाब-किताब लगाकर लोग रजाइयों का स्टॉक रखते थे। जो रजाई पुरानी हो गई या रुई खराब हो गई, उसे फिर से भरवाने के लिए रुई धुनाई करने वालों के यहां ले जाते थे।
इधर करीब चार-पांच सालों में रुई की रजाइयों के व्यापार में काफी बदलाव आया है। समय के साथ-साथ प्रतिवर्ष इनका व्यापार घटता जा रहा है। अब मार्केट में रुई की रजाइयों का कारोबार आधा भी नहीं रहा। इसका मुख्य कारण एक तो लोग रुई की रजाई को महंगा मान रहे हैं। दूसरा इसे संभालकर रखने में परेशानी होती है। इसी के चलते अब शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में कंबल की मांग खूब बढ़ी हैं। बाजार में विभिन्न वैराइटियों के कंबल हैं, जो रजाई की बराबरी कर रहे हैं।
रजाई का कारोबार महज 2-3 माह में सिमटा
पहले सर्दी के मौसम को देखते हुए अक्तूबर से लेकर मार्च माह तक रजाइयों की खूब डिमांड रहती थी, परंतु मौसम के व्यवहार में परिवर्तन आने से अब सर्दी भी महज दो माह मुश्किल से रहती है, ऐसे में रजाइयों की मांग घटकर आधी से भी कम रह गई है। अयोध्या के टेढ़ी बाजार पर रजाई-गद्दा आदि का व्यवसाय करने वाले शुभम ने बताया कि अब रजाई की मांग न के बराबर है।
गद्दे की बिक्री पर व्यवसाय निर्भर है। बताया कि सिंगल बेड की रजाई 800 रुपये, जबकि डबल बेड की 1400 रुपये से शुरू है। रुई के वजन व कपड़ों की वैराइटी के हिसाब से इसके दाम बढ़ जाते हैं। इस सीजन में अब तक महज 20 रजाइयां बिकी हैं। बताया कि पांच साल में 60 फीसदी लोगों ने रुई धुनने की मशीन बंद कर दूसरा कारोबार अपना लिया है।
अमृतसर, पानीपत और लुधियाना से आते हैं कंबल
देवकाली इलाके में सड़क किनारे कंबल का कारोबार करने वाले सीतापुर निवासी वाहिद ने बताया कि वह हर वर्ष ठंड के मौसम में करीब पांच साल से यहां व्यवसाय करने आते हैं। बाजार में लोग सिंगल बेड के लिए 300 से 3000 तक तथा डबल बेड के लिए 600 से 6000 तक के कंबल खरीद रहे हैं।
यह कंबल कड़ाके की ठंड में भी राहत देते हैं। बताया कि अमृतसर, पानीपत और लुधियाना से कंबल लाते हैं। इस वर्ष रेट में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इससे व्यापार पर भी असर पड़ा है, फिर भी ग्राहक खरीदारी करने आ रहे हैं।
अयोध्या। हर वर्ष सर्दी के समय में बिकने वाली रजाइयों का कारोबार मंदी के दौर से गुजर रहा है। ठंड से निजात दिलाने के लिए ओढ़े जाने वाली रजाई पर पिछले कुछ वर्षों से गर्म कंबल हावी हो गए हैं। बाजार में रजाइयों की बिक्री काफी कम हो गई है और विभिन्न रंगों व वैराइटियों के कंबलों की बिक्री जोरों पर है।
महिलाओं की नजर में जहां रजाई ओढ़ने, संभालने व रखने में दिक्कतें आती है, वहीं कंबल हलके होने के साथ-साथ रखने आदि में आरामदायक रहता है। इससे महिलाएं अब घरों में रजाई रखने से परहेज करने लगी हैं। जिले में बुजुर्गों को छोड़कर अन्य लोग गर्म कंबल को ही प्राथमिकता दे रहे हैं।
कुछ वर्ष पहले पहले हर घरों में रुई की रजाइयों की भरपूर मांग रहती थी। सर्दी के मौसम से पहले ही लोग अपने घरों में रजाइयों को संभालना शुरू कर देते थे। घर के सदस्य ही नहीं आने वाले रिश्तेदारों तक का हिसाब-किताब लगाकर लोग रजाइयों का स्टॉक रखते थे। जो रजाई पुरानी हो गई या रुई खराब हो गई, उसे फिर से भरवाने के लिए रुई धुनाई करने वालों के यहां ले जाते थे।
इधर करीब चार-पांच सालों में रुई की रजाइयों के व्यापार में काफी बदलाव आया है। समय के साथ-साथ प्रतिवर्ष इनका व्यापार घटता जा रहा है। अब मार्केट में रुई की रजाइयों का कारोबार आधा भी नहीं रहा। इसका मुख्य कारण एक तो लोग रुई की रजाई को महंगा मान रहे हैं। दूसरा इसे संभालकर रखने में परेशानी होती है। इसी के चलते अब शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में कंबल की मांग खूब बढ़ी हैं। बाजार में विभिन्न वैराइटियों के कंबल हैं, जो रजाई की बराबरी कर रहे हैं।
रजाई का कारोबार महज 2-3 माह में सिमटा
पहले सर्दी के मौसम को देखते हुए अक्तूबर से लेकर मार्च माह तक रजाइयों की खूब डिमांड रहती थी, परंतु मौसम के व्यवहार में परिवर्तन आने से अब सर्दी भी महज दो माह मुश्किल से रहती है, ऐसे में रजाइयों की मांग घटकर आधी से भी कम रह गई है। अयोध्या के टेढ़ी बाजार पर रजाई-गद्दा आदि का व्यवसाय करने वाले शुभम ने बताया कि अब रजाई की मांग न के बराबर है।
गद्दे की बिक्री पर व्यवसाय निर्भर है। बताया कि सिंगल बेड की रजाई 800 रुपये, जबकि डबल बेड की 1400 रुपये से शुरू है। रुई के वजन व कपड़ों की वैराइटी के हिसाब से इसके दाम बढ़ जाते हैं। इस सीजन में अब तक महज 20 रजाइयां बिकी हैं। बताया कि पांच साल में 60 फीसदी लोगों ने रुई धुनने की मशीन बंद कर दूसरा कारोबार अपना लिया है।
अमृतसर, पानीपत और लुधियाना से आते हैं कंबल
देवकाली इलाके में सड़क किनारे कंबल का कारोबार करने वाले सीतापुर निवासी वाहिद ने बताया कि वह हर वर्ष ठंड के मौसम में करीब पांच साल से यहां व्यवसाय करने आते हैं। बाजार में लोग सिंगल बेड के लिए 300 से 3000 तक तथा डबल बेड के लिए 600 से 6000 तक के कंबल खरीद रहे हैं।
यह कंबल कड़ाके की ठंड में भी राहत देते हैं। बताया कि अमृतसर, पानीपत और लुधियाना से कंबल लाते हैं। इस वर्ष रेट में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इससे व्यापार पर भी असर पड़ा है, फिर भी ग्राहक खरीदारी करने आ रहे हैं।
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