रिपोर्ट : सोनिया मिश्रा
चमोली: चमोली के कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम के निकट मां उमा देवी का मंदिर है. जिसे स्थानीय लोग उमा शंकरी के नाम से भी जानते हैं. उमा देवी मंदिर में मां उमा की पूजा कात्यायनी देवी के स्वरूप में की जाती है और बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग-7 के पास यह मंदिर स्थित है. कहा जाता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां मां उमा ने शिव को पति रूप में पाने के लिए अपर्णा स्वरूप में निर्जला व्रत रखकर उपासना की थी. मान्यता है कि देवी हर 12 साल बाद अपने मायके जाती हैं.
मान्यता के अनुसार, उमा देवी मंदिर आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था. वहीं कुछ विद्वान मंदिर और मंदिर में स्थापित मूर्ति को आठवीं सदी से पहले का बताते हैं. डिम्मर गांव के डिमरी ब्राह्मणों के घर को मां उमा का मायका कहा जाता है. क्योंकि, डिमरी ब्राह्मणों के सपने में ही आकर उनकी प्रतिमा मंदिर में स्थापित करने का आदेश मां उमा ने दिया था और ससुराल प्रायः कर्णप्रयाग के निकट ही कपीरी पट्टी को समझा जाता है.
छह महीने मायके में रहती हैं मां उमा
मंदिर के नरेश पुजारी कहते हैं कि मंदिर में मां उमा एक कन्या रूप में विराजित हैं और आकाश मार्ग में भ्रमण करते हुए प्रतिमाएं यहां उपस्थित हुई हैं. पूरे विश्व में मां उमा नाम से एकमात्र मंदिर कर्णप्रयाग में ही है, क्योंकि शिव को प्राप्त करने के लिए मां ने यहां तपस्या की थी. इसलिए इस मंदिर को उमा शंकरी मंदिर भी कहा जाता है. मां उमा शंकरी की प्रतिमा हर 12 वर्ष में अपने स्थान से बाहर लाई जाती है और वह 6 महीने के लिए अपनी ध्याणियों (मायके पक्ष की विवाहित महिलाएं) से मिलने जाती हैं.
बता दें कि उमा देवी मंदिर परिसर में माता के भक्तों का जमावड़ा हर रोज लगा रहता है. चैत्र मास की नवरात्रि में हर साल मंदिर में देवी को विशेष भोग लगता है. उस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं और सफलता एवं खुशहाली का आशीर्वाद मांगते हैं.
(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS 18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)
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FIRST PUBLISHED : February 01, 2023, 07:23 IST
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